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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 525 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
हे ज्ञानस्वरूपी पुज्ज! उत्तम संयम धर्म आत्मसिद्धि का अद्भुत मंत्र हैं इसके अभाव में आत्मसिद्धि संभव नहीं संयम वह सौरभ है, जिससे आत्मसौंदर्य सुरभित होता हैं संयम मन व वाणी की अनर्गल प्रवृत्ति को रोकने के लिए कंट्रोलर हैं जिसके जीवन में संयमरूपी लगाम नहीं है, उसका मनरूपी घोड़ा जीवन को कहीं भी पटक सकता हैं संयम जीवनरूपी गाड़ी का ब्रेक हैं संयम के बिना अर्थात् असंयमित - जीवन पशुत्व - जीवन हैं संयम ही सर्वश्रेष्ठ आत्मसौंदर्य एवं मानव का अनोखा आभूषण हैं संयम सुरभि जिसके पास है, वह स्वयं में सुभाषित होता ही है, साथ ही अन्य प्राणियों को सुरभित कर देता हैं संयमी की वाणी एवं चर्या में एक अनोखा ही सौष्ठव होता है संयमी चाहे बालक हो या वृद्ध पर वह अपने आप में वृद्ध होता है, लोकपूज्य होता है, परलोक में अनंतसुख का भोक्ता होता हैं किन्तु हो वास्तविक संयम अंदन व बाहर दोनों प्रकार से होना चाहिए क्योंकि भाव संयम ही सिद्धिदायक होता है भावसंयम से रहित बाह्य संयम का भेष लोकप्रशंसा करा सकता है, परन्तु आत्मप्रशंसा प्राप्त नहीं करा सकतां संयमित जीवन जीनेवाला ही सच्चा मानव हैं मन-वचन-काय तीनों संयमित होना अनिवार्य हैं तीनों की संयमित्ता ही सच्चा संयम हैं
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हे विज्ञ! आत्मा की चादर विषय पंक से दूषित हो रही हैं ये विषयों से स्वच्छ नहीं की जा सकती हैं वासना - पंक को प्रक्षालित करने के लिए संयम-नीर ही समर्थ हैं आत्मा की कालिमा संयम-नीर से ही धुलेगी और सही संयम ही जीवन का सुरक्षा कवच हैं दुर्ग के बिना जिस प्रकार सम्राट की सुरक्षा नहीं होती, उसके ऊपर करोड़ों आपत्तियाँ एवं शत्रुओं का आक्रमण संभव है, उसी प्रकार आत्म-सम्राट की सुरक्षा संयमरूपी दुर्ग से ही संभव है, अन्यथा अनेक प्रकार के विकारीभावरूपी शत्रु आक्रमण कर इस आत्म-सम्राट को निर्बल करके असंयमरूपी घोर अटवी में डाल देंगें दुःखों से छूटने का सरल उपाय आत्मसंयम ही हैं जिसके जीवन में संयम है, उसके जीवन में शांति हैं पर संयम में शांति का वरण कर पाएगा, जिसने संयम को स्वाधीनता से स्वकल्याण के उद्देश्य से स्वीकारां दूसरे के कहने से या दूसरों को देखकर किसी विषमता के द्वारा धारण किया गया संयम अशांति एवं दुःख को ही महसूस कराएगा, क्योंकि संयम में असंयम की याद सताएगी परिस्थिति ने संयमी बनाया, बनना नहीं चाहता था ऐसा संयम कष्टकारी होता है, न कि स्वाधीनभाव सहित धारण किया गया संयमं संयमी (साधु) जीवन स्वाधीन जीवन हैं स्वाधीनता के साथ स्वीकार करने पर संयम की शक्ति अजेय होती हैं उसे कोई परास्त नहीं कर सकतां सत्य संयम के आगे माथा टेककर चला करता हैं कमठ को भगवान् पार्श्वनाथ जी के चरणों में झुककर जाना पड़ां अति उपसर्ग किया, पर भगवान् पार्श्वनाथ संयम में अडिग रहे, कमठ को पराजित होकर लौटना पड़ां गांधी जी त्याग, संयम, सत्य के बल पर ही भारत को स्वतंत्र करा पाए, जिसके प्रभाव से असंयमी अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ां संयम का तात्पर्य पराधीनता नहीं है, बल्कि स्व का स्व पर अनुशासन है यानी आत्मानुशासन हैं जो आत्मानुशासन की सामर्थ्य रखता है, वही त्रिलोकीनाथ बनकर, त्रिलोकपूज्य होकर, सारे विश्व पर शासन करनेवाला परमात्मा बन जाता
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