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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 526 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 हैं जिसने स्व पर षासन नहीं किया, वह दूसरे के ऊपर षासन कैसे कर सकता है? करता है तो हँसी का पात्र बनता हैं जिसने संयमरूपी माँ की अंगुली थाम ली, वह नियम से मोक्ष महल तक पहुँच जाएगां यदि उंगुली छूट गई तो नियम से भटक जाएगां मर्यादाओं में रहना संयम हैं मर्यादा के बाहर किसी प्रकार के कृत्य को करना असंयम हैं इस प्रकार की प्रवृत्ति करनेवाला जीव लोक, समाज, राष्ट्र परिवार बंधु धर्मात्मा आदि की दृष्टि से गिर जाता है, किन्तु जो स्पपद की मर्यादा में चलता है, वह अपने व्यक्तित्व से सारी दुनियाँ को स्व के प्रति झुका लेता हैं व्यक्ति का व्यक्तित्व से सारी दुनियाँ को स्व के प्रति झुका लेता हैं व्यक्ति का व्यक्तित्व ही व्यक्ति को महान् बना देता हैं व्यक्ति चाहे गरीब हो या अमीर, चाहे छोटा हो या बड़ा परंतु व्यक्तित्व का धनी ही सर्वश्रेष्ठ हैं मनीषियों ने ज्येष्ठ की पूजा नहीं की, श्रेष्ठ की पूजा की हैं भारतीय संस्कृति हर समय गुणों की पूजक रही है, व्यक्ति की नहीं धन-वैभव को भारतीय संस्कृति ने कभी नहीं पूजां रावण के पास वैभव तो था, लेकिन असंयमी था, इसलिए लोकनिंदा का पात्र बनां राम के पास भले ही सोने की लंका नहीं थी, पर उनके पास संयम था, इसीलिए वह पूज्य हैं मर्यादा में जीनेवाले पुरुषोत्तम राम थें इसलिए राम, महावीर का नाम लिया जाता है, किन्तु रावण, कंस, जरासंघ के नाम की माला नहीं फेरी जातीं जो संयम के साथ जीता है, वह सर्ववंद्य स्वयंमेव हो जाता हैं माना कि कोई वाहनचालक है, वह यदि संयमित नहीं चलता तो किसी-न-किसी से टकराएगा, मौत के घाट भी जा सकता हैं कारण बना असंयमं इसीलिए जैनाचार्यों ने कहा- "प्राणीन्द्रियेष्वशुभवृत्तेविरंति संयमः" प्राणी एवं इन्द्रियों के प्रति अशुभ प्रवृत्ति का निरोध 'संयम' हैं संयम के साथ एक क्षण भी जीना श्रेश्ठ है, अमृततुल्य है, परंतु असंयम के साथ सहस्त्र कोटि वर्ष भी जीना अच्छा नहीं हैं अतः अपनी परिणति संयमी बनाओं आत्मा को परमात्मा बनाने की इच्छा है तो संयम पथ पर चलों 'चमकना है तो तपो' रे मानव! मिट्टी में घड़ा बनने की योग्यता है, पर बिना क्रिया किए मिट्टी घड़ा नहीं बन सकतीं दुग्ध में घृत है, लेकिन घृत प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया पूरी करनी पड़ेगीं बिना प्रक्रिया के दुग्ध से घृत संभव नहीं इसी प्रकार आत्मा में परमात्मशक्ति मौजूद है यानी आत्मा में परमात्मा विराजमान हैं पर जैसे बिना छैनी के पाषाण से प्रतिमा नहीं निकलती, वैसे ही बिना तप के आत्मा परमात्मा नहीं बन सकतीं तप-धर्म की परिभाषा करते हुए दिगम्बराचार्यों ने कहा "कर्मक्षयार्थ तप्यते इति तपः" जो कर्म-क्षय के लिए तपा जाता है, वह तप हैं जो तप जाता है, वह चमक जाता हैं यदि स्वर्ण - पाषाण को तपाया नहीं जाए तो स्वर्ण की प्राप्ति संभव नहीं स्वर्ण- पाषाण को तपाने से ही स्वर्ण की प्राप्ति होगी इच्छा का निरोध करना वास्तविक तप हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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