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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 504 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
पाए और जिसने ग्रंथ नहीं लिखे, युवा अवस्था में ग्रंथि को छोड़ दिया, वह इतने महान बन गये-आचार्य विद्यासागरं
भो ज्ञानी! आचार्य को सूर्य की ही उपमा देना, चन्द्रमा की उपमा भूलकर भी मत देनां आचार्य को सूर्य ही कहना, क्योंकि जो ताप देता हो और स्वयं शीतल रहता हो, उसका नाम सूर्य हैं सूर्य शीतल है, परन्तु सर्य की किरणें उष्ण हैं. चंद्रमा की किरणें शीतल हैं सूर्य एक विमान हैं यदि यह विमान उष्ण होता, तो देव झुलस जाते, क्योंकि इस विमान में देव बैठा हुआ हैं जैसे कि आपके हाथ में टार्च होती है, आप हेलोजन भी ले लो, लेकिन आपका हाथ गर्म नहीं होता है, परन्तु उसकी किरणें जो अनुभव कर रहा है, उसे गर्म लग रहा हैं जब सूर्य चमकता है, तो सारे अधोलोक से ऊपर के ब्रह्माण्ड में (सारे विश्व में ) प्रकाश देता है, परन्तु मूल में शीतल हैं ऐसे ही आचार्य-परमेष्ठी शीतल होते हैं, पर शिष्य सम्पदा को कैसे सम्भालते हैं, इसलिए आपको उष्ण नजर आते हैं अतः, उनको सूर्य कहा हैं यदि अण्डे के ऊपर पक्षी न बैठे तो क्या होगा? वह जीव वृद्धि को प्राप्त नहीं होगां वे आचार्य शिष्य के ऊपर न बैठें तो, भो ज्ञानी! शिष्य का शिष्यरूपी पक्षी उत्पन्न ही नहीं हो सकतां इस पक्षी को तो सिद्ध शिला पर उड़ना हैं जिसने अपने संघ में अनुशासन की ओज को खो दिया, वह संघ चंद्रमा की तरह चमकने वाला नहीं हैं अनुशासन -हीनता के कारण सब खत्म हो जाता है आचार्य परमेष्ठी के मूलगुणों में तप भी हैं बारह तपों पर दृष्टिपात करें अमृतचन्द्र स्वामी के प्राचीन ग्रंथों में नाम देखना, उन्हें अमृतचन्द्र 'सूरि लिखा होगां सूरि यानी आचार्य आचार्य को तप निश्चित कर दियां क्यों निश्चित कर दिया है? कुछ करने को गर्माहट चाहिए जिस दिन आपके शरीर की गर्मी चली जायेगी, उस दिन आप शरीर में नहीं रहोगें सूर्य का तेज सूर्य का ज्ञान करा देता है इसी प्रकार शरीर की गर्मी इस देह में चैतन्य का ज्ञान करा देती है आचार्य का तेज भी तपस्या का ज्ञान करा देता है, ध्यान रखना, ललाट पर तिलक लगाना बन्द मत करना जब तक तिलक लगाते सूखता रहेगा, तब तक मुझे मालूम होगा कि मेरी जीवन -यात्रा चल रही हैं जिस दिन तिलक सूखना बन्द हो जायेगा, उस दिन तुम समाधि लेकर बैठ जाना, खड़े मत होनां यदि ललाट का तिलक नहीं सूखा, तो समझना बस आज ही 1-2 घण्टे में तुम्हारी मृत्यु होने वाली
हैं
भो ज्ञानी! अब अनशन-स्वभाव पर दृष्टिपात करें अनशन यानि चारों प्रकार के आहार-पानी का त्याग करना, फिर निजात्म तत्त्व का स्वाद लेना और जिनेन्द्र की वाणी का पान करनां बस, आचार्य परमेष्ठी यही तो करते हैं कि महीने-महीने उपवास कर लिये, घनघोर तप कर लिया, फिर भी आवश्यकों में शिथिलता नहीं बरत रहें वे शक्ति के लिए, आत्म तेज के विकास के लिए, निर्मल स्वास्थ्य के लिए और राग-परिणति के
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