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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 502 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
इसी तरह एक व्रत में दोष लग जाये, तो साधु चर्या फीकी लगने लगती हैं भो आत्मन्! आचार्य भगवान् कुंदकुंद स्वामी 'समयसार जी ग्रंथ में कह रहे हैं कि
वदणियमाणि धटंता सीलणि तहा तवं च कुवंतां परमट्ठ बाहिरा जेण तेण ते हाँति अण्णाणी 160
तप को क्रिया काण्ड कहकर निज आत्मा के शत्रु मत बन जानां जो संयम चारित्र की अवहेलना कर रहा है, ज्ञान की अवहेलना कर रहा है, वह अपनी आत्मा का आत्मा से घात कर रहा हैं ध्यान रखना, कभी भी ऐसा मत कह देना कि तप तो क्रियाकाण्ड हैं हाँ, यदि वह तप परमार्थ से शून्य है, तो क्रियाकाण्ड हैं, क्योंकि जो व्रती शील व संयम को धारण करके भी परमार्थ से शून्य होते हैं, वे निर्वाण को प्राप्त नहीं कर पाते हैं परमार्थ से शून्य होकर जो कुछ भी करोगे वह सब संसार का हेतु बनेगा इसलिये जो तप को मोक्षमार्ग नहीं मानता, वह जैन आगम से वाह्यय यानि मिथ्यादृष्टि हैं जो अपनी शक्ति को छिपा रहा है, तप नहीं कर रहा, वह तो डाकू हैं
अहो! चारित्र से विशुद्धि बढ़ती है और संयम - तप से चारित्र बढ़ता हैं संयम पालन के भाव बनाओं ज्ञान कहीं नहीं प्राप्त करना पड़ेगा, इसलिये ज्ञान का पुरुषार्थ मत करो तुम संयम का पुरुषार्थ करों संयम से विशुद्धि बनेगीं क्षयोपशम व उपशम अपने आप / स्वयं बनता है, सहज बनता हैं ग्रंथों से निर्ग्रथ के बारे में जान तो सकते हो, पर ग्रंथ निग्रंथ नहीं बना पायेंगे निर्ग्रथों के पास निग्रंथ बन पाओगें ध्यान रखना, ज्ञान की किताब लिखना सरल है, चारित्र पर पुस्तक लिखना सरल है, परन्तु चारित्र की पुस्तक बनकर जीना बहुत कठिन हैं चारित्र पर पंडित आशाधर जी ने तो "अनगारधर्मामृत लिख दिया, लेकिन अनगार नहीं बन पायें
भो ज्ञानी! आज से ध्यान रखना कि संयोग मिले हैं, मिलेंगे, पर इनको स्वभाव मान कर निज स्वभाव का घात मत करनां निर्ग्रथता प्राप्त किये बिना वीतरागभाव का उदय नहीं होगा, यह पूर्णतः सत्य हैं अतः उसकी प्राप्ति का पुरुषार्थ आज से ही चालू कर देनां भगवान् आत्माओ! समय कम है, समय को समझों
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