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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 501 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी! यह जैनदर्शन है जो पाप नहीं कर रहा, वह तो पूजा का पात्र हैं ध्यान रखना, दुनियाँ के संतों की आरती उतर रही होगी, उन्हें मालाएँ चढाई जा रही होगी, लेकिन अष्ट द्रव्य से पूजा केवल दिगम्बर आम्नाय में ही की जाती है, क्योंकि पंचपरमेष्ठी को भगवान के स्थान पर रखा हैं इसलिए दया का पात्र भगवान नहीं, पापी होता हैं भगवान तो पूजा का पात्र होता हैं पूज्यपाद स्वामी कह रहे हैं कि जिससे आत्मा पवित्र हो वही पुण्य हैं आत्मा की पवित्रता रत्नत्रय धर्म से हैं अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि सुनो, अणु-अणु की बातें तो हो रही हैं, अब महाव्रतों की चर्चा करों सकल संयम महाव्रत कहा जाता हैं जिन व्रतों को महापुरुष धारण करते हैं, उन व्रतों का नाम महाव्रत हैं जिसको महंत धारण करे, उसका नाम महाव्रत है अथवा जिन व्रतों को धारण करने से आत्मा महान बन जाती है, उसका नाम महाव्रत होता हैं जिनके स्वीकार करने से सकल क्लेश मिट जाये, उस व्रत का नाम सकलव्रत होता हैं सकल यानि टुकड़े और सकल यानि सम्पूर्ण आपके व्रत टुकड़े थे, अणु-अणु हो गयें जो संसार के टुकड़े, पुद्गलों के टुकड़े से पृथक करा दे और अखण्ड द्रव्य आत्मा के सर्वांग में प्रवेश करा दें, उसका नाम सकलव्रत होता हैं इसलिये पंडित दौलतराम को लिखना पड़ा - " मुनि सकलव्रती बड़भागी", यदि विश्व में कोई बड़भागी है तो सकलव्रती हैं पंडित टोडरमलजी, दौलतराम जी, बनारसीदास जी इनकी अपेक्षा आप लोग भाग्यवान हो उनको तो निर्ग्रथों के दर्शन ही नहीं हुये, वह तो ग्रंथॉ मात्र को निहारते रहें परंतु आज के श्रावक ग्रंथ और निग्रंथ दोनों के दर्शन से निहाल हो रहे हैं जिस षट्खण्डागम ग्रंथराज के दर्शन मूड़बद्री में टिकिट से होते थे, आज जिनालय की अलमारी शोभायमान हो रही हैं
भो ज्ञानी! चेहरा बाहरी आवरण है, मगर तू पुद्गल में आनन्द मना रहा हैं ध्यान रखो, मोह से आपकी आँखें तो अंधी हो गई और आपके राग से आपका विवेक बंद हो गया, लेकिन उस सर्वज्ञ के ज्ञान में सब कुछ नजर आ रहा हैं छिपा लो, पर छिपाकर जा नहीं पाओगें जाओगे कहाँ ? दर्पण में सुन्दर दिखने से चेहरा सुन्दर नहीं होता, दर्पण सुन्दर नहीं बनातां दर्पण असुन्दर भी नहीं बनातां जैसा होता है, वैसा ही दिखता हैं ऐसा ही केवली के ज्ञान में झलकता हैं अभी तुम कषाय से भी काले हो, शरीर से भी काले हों इसलिये तुमसे तो कौआ श्रेष्ठ है, क्योंकि अन्दर व बाहर एक सा है, पर मधुर भाषी कोयल अच्छी नहीं है, क्योंकि वह अपनी संतान को भी कौआ से पलवाती है, कौआ के घोंसले में रख देती हैं समझ जाओ, अपने जीवन के पाप परिणामों को दूसरों पर थोप देती हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं- सकल महाव्रत काँच का शीश महल हैं उस महल में जिसका प्रवेश हो जाये, वही चमकता हैं इसी प्रकार साधु स्वयं चमकता है और उसके पास जो पहुँच जाता है, वह भी आनन्दित हो उठता है जैसे एक काँच गिर जाये तो फीका लगने लगता है,
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