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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 489 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
दिखा रहे हों एकदम आँखें बनाईं, भौंह चढ़ा लीं वह नहीं, यह लेकर आओ, ऐसा शरीर दिखा दिया, ये अतिचार हैं इतना ही नहीं जब कोई नहीं समझ पाया, तो उठाया पत्थर और दे मारा, सुनो! वह उठा लाओं महाराज का महाव्रत है, उनको झाडू लगाने का त्याग हैं तुम भी महाव्रती हो इतनी भाषा बोल दी, बस हो गया काम लग गया दोषं क्योंकि आपने उपदेश दियां भैया! बड़े सम्हलकर बोलना चाहिए पुद्गल का क्षेपण करना, काम-चेष्टा के अश्लील वचन का बोलना, अशुभ वचन बोलना यह भी अतिचार हैं ध्यान से सुनना, आज तुम्हारे पुण्य का योग है सो तुम भाग्य से मनुष्य बन गये तो कर्म भूल गयें सीमा के बाहर जो भी आप सोचेंगे वह अतिचार के अंतर्गत आयेंगां जितनी भोग- सामग्री तुम्हें चाहिए, उतनी ही रखना चाहिए भोजन में तुमको एक रोटी तक खाते नहीं बनती परन्तु लालसा है चार खाने की अतः, चार रखकर बैठ गयें पदार्थों को अधिक नहीं रखनां इसी प्रकार कुछ लोगों की आदत होती है कि अकेले भी बैठे होंगे तो बड़बड़ाते रहते हैं कुछ लोग सोते-सोते बड़बड़ाते हैं यानि व्यर्थ में बातें करना यह भी अतिचार हैं ध्यान रखना, वचनों का भी संयम रखो, ज्यादा मत बोला करों भोग और उपभोग की सामग्री को बिना प्रयोजन के अधिक जुटाकर रखना और बिना विचारे कोई काम करना भी अतिचार हैं बिना विचारे कुछ लोग काम कर लेते हैं, बाद में पछताते हैं पहले विचार कर लेतें इसी का नाम विवेक है, इसलिए आपका नाम श्रावक हैं आप श्रद्धावान, विवेकवान, क्रियावान हॉ अतः अतिचारों से बच्चों
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श्री जिन पंच बाल यति मंदिर
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