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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 482 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! ध्यान रखना, जीवन बनाने में बहुत समय लगता है, लेकिन मिटाने में कोई समय नहीं लगतां पुरुषार्थ करके कलकल भूमि निगोद से निकलकर एक जीव यहाँ तक आ गया, अब संभलने के अवसर यहीं पर हैं इसलिए व्रत तो स्वीकार कर लिया है, पर जो दोष लग रहे हैं, उन दोषों में लिप्त मत हो जाना अन्यथा दोषों का शमन बहुत कठिन होगां यदि साधना निर्मल नहीं है, तो भविष्य में मोक्ष मिल ही नहीं सकता एवं वर्तमान के उत्कृष्ट इंद्रिय-सुख भी नहीं मिलेंगें आचार्य भगवन् नेमीचन्द्र स्वामी ने गोम्मट्टसार “(कर्मकाण्ड)' ग्रंथ में कहा है कि मोह की दशा शहद लिपटी तलवार हैं यदि जिव्हा पर फेरे तो मीठी तो लगती है, परंतु जीभ के विभाग हो जाते हैं, टुकड़े हो जाते हैं ऐसे इंद्रिय भोग भी भोगने पर जीव को मधुर महसूस तो होते हैं, लेकिन यह भोग बाद में बड़े कष्ट देनेवाले होते हैं इसीलिए विवेकी कुछ करने से पहले ही सोच लेता है कि इसका परिणाम क्या होगा? अहो! पाप करने से पूर्व पाप के विपाक का ध्यान आ जाए तो पाप करने के परिणाम हो ही नहीं सकतें नरक में पड़े जीव को जो वेदना हो रही है, वह वेदना नरक में जाने से पहले हो गई होती, तो वह नरक में जा ही नहीं पातां भो ज्ञानी! हम लोग भोपाल चातुर्मास में एक गली से निकलें वहाँ से कई लोग निकल रहे थे, लेकिन कोई बचा नहीं पा रहा थां खुले स्थान पर बकरे उल्टे लटके हुए थें देखते ही देखते उनके दो टुकड़े कर दिये गये हे प्रभु! यह सब क्या हो रहा है? कि साधु भी निकल रहे हैं, सज्जन भी निकल रहे हैं, लेकिन कोई उनको बचा नहीं पा रहा हैं इस वेदना का वेदन यदि आज आपको हो जाए, तो विश्वास रखना कि ऐसी वेदना जीवन में कभी नहीं आएगी किसी भी कषाय के वेग में, किसी भी आवेश में आप एक-मुहूर्त मात्र दे देनां सिद्धांत कहता है कि अड़तालीस-मिनिट के बाद नियम से परिणाम परिवर्तित हो जाते हैं क्रोध मान में, मान मायाचारी में, मायाचारी लोभ में बदल सकती है, क्योंकि एक कषाय चौबीस घंटे नहीं चलती लेश्या व परिणाम अवश्य ही बदलते हैं मान और लोभ बहुत देर बाद प्रकट होता हैं माया कषाय रेगिस्तान की नदी जैसी होती है कि अंदर प्रवेश करके फिर कभी विशाल रूप में दिखती हैं मान और क्रोध में एक तो घास की की तरह है और दूसरी पत्थर पर पानी की एक बँद की तरह है, जो गिर जाए तो तुरन्त दिख जाती हैं दोनों जीव के परिणाम का घात तो करती ही हैं, साथ ही व्रतों से भी दूर भगा देती हैं भो ज्ञानी! अतिचारों को आप सामान्य मत गिननां कल आपसे कहा था कि दोष कितना ही छोटा क्यों न हो, लेकिन वह संयम को टूक-टूक कर देता हैं असंयम भाव भी प्रेम/वात्सल्य को तोड़ देता हैं इसलिए आचार्य महाराज व्रतों के अतिचार गिना रहे हैं कि जो वस्तु आपने बहुत सुंदर-सुंदर दिखलाई थी, पर उसके अंदर मिलावट मिली हुई हैं दिखाया कुछ, दिया कुछ हम शरीर से बहुत अच्छे/उत्तम साधक के रूप में दिखते हैं, परन्तु भावना में साधना नहीं है, यह प्रतिरूपक-व्यवहार भी चोरी हैं हम उच्च-धर्मात्मा के रूप में लोगों के बीच में आए हैं और परिणामों में कलुषता भरी हुई हैं लोगों ने आपको बहुत श्रेष्ठ धर्मात्मा Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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