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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 483 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 समझा है, परंतु परिणामों में तुम्हारी कलुषता रही तो इसका नाम प्रतिरूपक- व्यवहार हैं प्रतिरूपक व्यवहार कह रहा है कि दिखाया कुछ दिया कुछ ऊपर-नीचे धो-पोंछ कर अच्छे से रख दियें बस ऐसी ही तुम्हारी ऊपर की साधना कुछ और होती है और अंदर की साधना कुछ और होती है, जिसके कारण महाव्रत या अणुव्रत का पालन नहीं होतां भो ज्ञानी! यदि आपको मालूम है कि यह व्यक्ति कोई वस्तु चोरी से उठा कर लाया है, फिर भी आपने उपयोग कर ली, तो चोरी की वस्तु का प्रयोग करना भी अचौर्य व्रत में दोष हैं अहो ! मुनिराज तो एक-दूसरे के कमण्डल का भी उपयोग नहीं करते पूछ कर लेते हैं आपको एक ग्रंथ किसी ने अध्ययन करने के लिए दिया, तो अध्ययन ही करना था, आप अध्ययन कर लो, परन्तु यदि लंबा समय लगता है तो आप एक बार उससे बोल दो कि, भैया! आपका ग्रंथ हमारे पास हैं अन्यथा उसके भाव बदल सकते हैं कि मैंने तो ग्रंथ पढ़ने दिया था, वह तो रख के ही रह गयें यानि दूसरे के भावों का भी ध्यान रखनां क्योंकि बाजार में कोई वस्तु सौ रुपए में आ रही है और सामने वाला वही वस्तु पचास रुपए में दे रहा हैं कौन नहीं जानता है कि यह वस्तु चोरी की होगी ? लेकिन धीरे से आपने खरीद ली. आपकी स्वयं की परिणति ही चोर हो गई यह आदान अतिचार हैं भो ज्ञानी! राज्य के विरुद्ध अतिक्रम करना अथवा शासन की अनुमति नहीं है ऐसे किसी कार्य को करना विलोप - अतिचार हैं इन्कम टैक्स, सेल टैक्स और तो और घर में जो विद्युत तार लगे हैं उनमें भी व्यक्ति ने मीटर में तार लगा दियां आजकल मिलावट के काम का तो कहना ही क्या? घी में क्या-क्या नहीं मिलाते, काली मिर्ची में पपीते के बीज मिला दिये, घर पर माता-पिता से कहकर आए थे कि वंदना करने जिनालय जा रहा हूँ, किन्तु यहाँ आकर अशुभ परिणाम कर लिएं तो बताओ! शुभ परिणामों में अशुभ परिणामों का मिश्रण किया कि नहीं? जैसे शासन ने आदेश किया कि आठ बजे दुकानें बंद करों इसी प्रकार साधना का समय है, सामायिक का समय है, पूजन का समय है, परन्तु आप मंदिर जी में थाली लिये खड़े होकर मित्र से बातें कर रहे हों भो ज्ञानी! अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करना, यह भी चोरी हैं किसी के यहाँ से आटा लाने को कहा तो बर्तन में दबा - दबाकर लाया और जब देने गया तो पोला करके चोटी बनाकर गया, तुरंत उंड़ेला और भाग गयें कितना देकर आए हैं आप? अहो! चोरी तो नहीं की, लेकिन मायाचारी तो जरूर कर रहा हैं आपने व्रत में दोष लगाया हैं आपने मौन से भोजन करते समय तुम्हारे मन में कोई भाव आ गया, तो भो ज्ञानी! तू असत्य में चला गयां यह अचौर्य व्रत का अतिचार हैं। भो ज्ञानी! ब्रह्मचर्य व्रत के पाँच अतिचार हैं कामसेवन तो नहीं कर रहा है, लेकिन कामसेवन की तीव्र भावना रख रहा हैं काम के अंगों को छोड़कर अनुचित क्रिया करना 'अनंगक्रीड़ा' नाम का अतिचार हैं अनंगक्रीड़ा को अतिचार ही नहीं, अनाचार भी कहा हैं 'राजवार्तिककार' ने स्पष्ट लिखा है कि यह जीव Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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