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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 481 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"अतिचारों से बचो"
स्मरतीव्राभिनिवेशोऽनङ्गक्रीडान्यपरिणयनकरणम्
अपरिगृहीतेतरयोर्गमने चेत्वरिकयोः पञ्च186 अन्वयार्थ : स्मरतीव्राभिनिवेशः = कामसेवन की अतिशय लालसा रखनां अनङ्गक्रीड़ा = योग्य अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से कामक्रीड़ा करनां अन्यपरिणयनकरणम् = अन्य का विवाह करनां च = और अपरिगृहीतेतरयोः = अविवाहित तथा विवाहितं इत्वरिकयोः = व्यभिचारिणी स्त्रियों के पासं गमने = गमनं पंच = ये ब्रह्मचर्यव्रत के पांच अतिचार हैं
वास्तुक्षेत्राष्टापदहिरण्यधनधान्यदासदासीनाम्
कुप्यस्य भेदयोरपि परिमाणातिक्रियाः पञ्चं 187 अन्वयार्थ : वास्तुक्षेत्राष्टापदहरिण्यधनधान्यदासदासीनाम् = घर, भूमि, सोना, चांदी, धन, धान्य, दास-दासियों के कुप्यस्य = स्वर्णादिक धातुओं के अतिरिक्तं वस्त्रादिकों के भेदयोः = दो-दो भेदों के अपि = भी परिमाणातिक्रिया = परिमाणों का उल्लंघन करना एते अपरिग्रह व्रतस्य = ये अपरिग्रह-व्रत के पंच = पांच अतिचार हैं
अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन अमृतचन्द्र स्वामी ने कथन किया है कि जो श्रावक अतिचारों से रहित/निर्दोष बारह व्रतों का पालन करता है, वह सोलहवें स्वर्ग की यात्रा करता हैं अहो! परिणामों की विचित्रता कि एक सम्यकदृष्टि श्रावक उत्कृष्ट निर्दोष बारह व्रतों का पालन कर सोलहवें स्वर्ग तक जा सकता है और एक मिथ्यादृष्टि अभव्य भी वीतराग-मुद्रा को धारणकर नौवें ग्रैवेयक तक की यात्रा कर लेता हैं यह द्रव्य-संयम और शुक्ल-लेश्या का प्रभाव है कि ग्रैवेयक में जो जीव जा रहा है वह अशुभ लेश्याओं से नहीं, शुभ लेश्याओं से जाता हैं अनन्तानुबंधी कषाय की मंदता जब इतना पुण्य-आस्रव करा सकती है तो, भो ज्ञानी आत्माओ! संज्वलन कषाय की मंदता कितना पुण्य-संचय करा सकती है? जीव ने यदि अतिचारों पर विचार नहीं किया, तो अनाचार के प्रवेश होने में देर नहीं लगतीं अतः अतिचार को समझने की बहुत ही आवश्यकता हैं जिनवाणी कह रही है कि यदि व्रतों का पालन विवेक से करोगे तो अतिचारों से बच जाओगे, अन्यथा विवेक खोने पर तो अतिचार क्या, अनाचार में भी प्रवेश कर जाओगें
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