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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 443 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"आहार दान अहिंसा स्वरूप"
गृहमागताय गुणिने मधुकरवृत्त्या परानपीडयते वितरति यो नातिथये स कथं न हि लोभवान् भवतिं 173
अन्वयार्थ :यः = जो गृहस्थं गृहमागताय = घर पर आये हुए गुणिने = संयमादि गुण युक्त को और मधुकरवृत्त्या = भ्रमर के समान वृत्ति से परान् = दूसरों को अपीडयते =पीड़ा नहीं देतां अतिथये = अतिथि-(साधु ) के लिए न वितरति =भोजनादिक नहीं देता हैं सः लोभवान =वह लोभी कथं न हि भवति =कैसे नहीं है?
कृतमात्मार्थ मुनिये ददाति भक्तमिति भावितस्त्यागः अरतिविषादविमुक्तः शिथिलितलोभो भवत्यहिंसैवं 174
अन्वयार्थ :आत्मार्थ = अपने लिए कृतम् = बनाये हुएं भक्तम् = भोजन को मुनिये ददाति = मुनि के लिए देवेंइति भावितः = इस प्रकार भाव-पूर्वकं अरतिविषादविमुक्तः अप्रेम और विषाद से रहित तथां शिथिलितलोभ : लोभ को शिथिल करने वाला त्यागः= दानं अहिंसा एव भवति = अहिंसा-स्वरूप ही होता हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की दिव्य-देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने सहज-रूप से कथन करते हुए संकेत दिया है कि सहज-स्वरूप निग्रंथों में होता है अर्थात् निग्रंथ सहज-स्वरूप में चलते हैं अहो मुमुक्षु! आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी तो मुनिराज की बात कर रहे हैं परंतु तुम्हारे द्वारे पर श्वान भी आ जाये तो डंडा मार के मत भगानां वह भी भावी भगवान है, भटका भगवान
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