________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 423 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो मनीषियो! भगवान् अमृतचंद्रस्वामी ने अलौकिक सूत्र प्रदान किया है कि जीवन में यदि अमूर्तिक समरसी भाव का आनंद लूटना है, तो मूर्तिक विषयों की अनुभूति का विसर्जन करना होगां मनीषियो! पौद्गलिक पिण्डों में आत्मानंद कहाँ और आत्मानंदी को पौद्गलिक पिण्डों की अनुभूति कहाँ? वह ग्रीष्मकाल में शीत-काल और शीत-काल में ग्रीष्म-काल की अनुभूति करना चाहता हैं स्वात्मानुभव शीतल अनुभूति हैं भोगों की ज्वाला ग्रीष्मकाल की तपती दोपहरी हैं
___ भो ज्ञानी! मोक्ष आस्रव से नहीं, मोक्ष तो संवर से होगा और संवर तभी होगा, जब इच्छाओं का निरोध होगां जिसकी इच्छाएँ असीम है, उनका संसार असीम हैं जिनकी इच्छाओं की सीमाएँ हैं, उनके संसार की सीमाएं भी हैं बस, समझना अपने परिणामों से कि मेरी इच्छाएँ कितनी हो चुकी हैं यदि इच्छाएँ सूख गई हैं, तो संसार सूख जाएगां भो चेतन! प्रभु शीतलनाथ स्वामी के चरणों में बैठकर भी ऊपर चक्र चल रहा है और नीचे प्रवचन चल रहा हैं एक ओर समयचक्र अर्थात् काल चक्र है तो दूसरी ओर कर्मचक्र हैं भगवान् के चरणों में, पंखा लगाकर, ध्यान कर रहे हो, अब सोचना वायुकायिक की हिंसा हो रही है या नहीं? अब कई जगह मन्दिर में कूलर भी हो गये हैं, जिनसे त्रसजीवों का घात किया जा रहा है और "मैं तो चिद्रूप हूँ" कह रहा हैं तू चिद्रूप है, पर अनंत सिद्धों के रूप का भी तुम घात मत करों वह पूजा-पाठ का साधन नहीं हैं अहो सुखियो! विद्यार्थी को सुख नहीं मिलता और सुखार्थी को कभी विद्या नहीं मिलतीं भगवान् शीतलनाथ स्वामी के सुख तो निराबाध, अव्याबाध हैं इनके सुख बाधा से मुक्त हैं, निर्वाध हैं इसलिए ऐसे सुख की बात करो, जिसके बाद दुःख का लेश न हों लेकिन मिलेगा तभी, जब वर्तमान के सुखों का स्वेच्छा से पलायन होगां मालूम चला कि दाँत में कीड़ा लग गया तो वैद्य ने कहा- मीठा खाना छोड़ दो, नहीं तो दाँत निकालना पड़ेगां चलो भैया, नहीं खाएँगें अहो त्यागी! दाँत के लोभ में छोड़ा है, इच्छा का निरोध नहीं किया हैं अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि उपवास के दिन तो आपने भोग व उपभोग छोड़ दिये थे, इसलिए अहिंसा व्रत आपके साथ था और आप महाव्रती के तुल्य थें
भो ज्ञानी! किसी व्यक्ति को रामलीला का राम बनाया जाए तो वह सोचता है कि देखो मैं राम बना हूँ जब नाटक के राम बनना इतना आनंद लाता है कि मैं राम हूँ तो, भो चेतन आत्माओ! कौशल्या के राम को कितना आनन्द होगा? महाव्रती को कितना आनंद होगा? पंडित दौलतराम जी से पूछ लो- "यों चिन्त्य निज में थिर भये, तिन अकथ आनंद जो लयों' निज में लीन योगी को आचार्य योगीन्दुदेव ‘परमात्मप्रकाश में लिख रहे हैं कि करोड़ों देवांगनाओं के उपभोग में जो सुख देवों को नहीं है, वह सुख क्षणार्ध में एक निग्रंथ योगी को हैं युक्ति मत समझना, अनुभव करके देखना इतने सारे लोग, फिर भी शांत बैठे हों हकीकत बताऊँ-आप प्रवचन का आनंद नहीं लेते, आप वास्तव में यहाँ शांति का आनंद ले रहे हों दिन में एक क्षण भी शांति का अनुभव हो जाए, तो दिन मंगलमय होता हैं चौबीस घंटे में एक मिनिट भी ध्यान लग जाए तो इतनी
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com