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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 421 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भगवान् है, कभी निर्दोष हो जायेगां देखो यशोधर मुनिराज का उदाहरणं संत हृदय वही होता है, जो शत्रु व मित्र दोनों को समान आशीष देता हैं जैन संत किसी को श्राप नहीं देते, वरदान नहीं देते, मात्र आर्शीवाद देते हैं यदि वरदान देंगे तो राग, श्राप देंगे तो द्वेष और आशीर्वाद देंगे तो हितोपदेश
भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि जब तुमने भोगों का परिमाण कर लिया, जैसे आज आपने नियम ले लिया कि मैं एक बार भोजन करूँगा, तो एक बार भोजन में तो हिंसा होगी, पर दूसरे बार की हिंसा बच जायेगीं देखो, आपके अन्दर कितनी करुणा रहती है? कम खाने से काम चल जाता है तो कम ही खाया करों भोगोपभोग-परिमाण व्रत में त्रसहिंसा का त्याग तो देशव्रती के होता ही है, लेकिन जो स्थावर हिंसा चल रही थी, उसमें भी परिमाण कर लों यदि उपवास किया तो पूरे पाप छूट गये और उपवास नहीं किया, मात्र परिमाण किया तो एक बार में बनाने वाले भोजन की तज्जन्य हिंसा बच गईं आप मर्मभेदी शब्द किसी से मत कहना, क्योंकि हिंसा का दोष लगेगां उस समय मौन ले लिया करों कम से कम मंदिर में मौन रखा करो कि तत्त्व चर्चा के अलावा अन्य कोई चर्चा नहीं करेंगे अर्थात् राग-द्वेष की चर्चा नहीं करेंगें अतः हिंसा चली गई और असत्य भी गयां सम्पूर्ण पदार्थों के ग्रहण करने का उसने त्याग कर दिया है, इसीलिए उसकी चोरी भी चली गईं जिसने उपवास किये हैं, वह अब्रह्मम का सेवन कैसे करेगा? उसका मैथुन का त्याग हो गया तो कुशील भी गयां अतः, आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि जिसको शरीर से ममत्व नहीं होता, वही उपवास कर पाता हैं
केलिफोर्निया स्थित श्री जिन मंदिर.
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