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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 420 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
मिथ्यात्व के कीट को हटा देनां अहो! इस पुद्गल से तूने भोग भोग लिया तो रोना-ही-रोना है और इस पुद्गल को निग्रंथ बना दिया तो आनन्द ही आनन्द हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि तीनों अवस्थाओं को समझ लो, तो परमात्मा बन जाओगें भो ज्ञानी! यदि मुनि बनोगे तो वृत्ति-परिसंख्यान का नियम करना पड़ता हैं अतः, उसका अभ्यास कर लो और भोगों का परिमाण कर लों यह नहीं हो सके तो कम से कम जब रसोई घर में जाओ, तब मौन ले लेनां जो पहली बार परोसा गयो, उतना ही लेना और बिल्कुल शान्त भाव से पानी पीकर चले आनां फिर देखना आज का दिन कैसा निकलता है? जब आज का दिन अच्छे से निकल जाये तो फिर तनिक और बढ़ा देनां ऐसा नहीं सोचना कि कल कर लिया, वह बहुत हो गयां यह तुम्हारे भोगो परि भोगपरिमाण-व्रत चल रहा हैं
भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः उपभोगोऽशनवसनप्रभृतिः पञ्चेन्द्रियो विषय; 83 र.क.श्रा.
जो एक बार भोगा जाये, वह भोग कहलाता है और जो बार-बार भोगा जाये, वह उपभोग कहलाता हैं यह भोगोपयोग परिमाण शिक्षाव्रत हैं यदि जीव को साधु बनना है तो पहले शिक्षाव्रत का पालन करना अनिवार्य हैं क्योंकि यहाँ से तुम्हारी गृद्धता कम होगीं ऐसा नियम लेकर दूसरे के घर में भोजन करने जानांयदि ऐसे सज्जन फँस जायें जो पूछ-पूछ कर दें अथवा दस आदमी सामने बैठ जायें तो शर्म के मारे तुम हाथ धोकर बैठ जाओगें अब सोचना, साधु का आहार करना ही तपस्या करना हो जाता हैं भीड़ लगी हो और सब देख रहे हों, इसके बाद भी कोई कह रहा है तो भी यह नहीं लेतें "पराधीन मुनिवर की चर्या, पर घर जायें, माँगत कछु नाहीं" भो चेतन! आज अभ्यास जरूर करना, फिर देखना कि यदि आपने शांति से कर लिया तो घर के लोग तुम्हारे ऊपर दूनी श्रद्धा करेंगें बस, फिर आपको अनुभव हो जायेगा कि वाह्य-संयम की क्या महिमा है? लेकिन आप मौन रहना, कुछ माँगना नहीं मौन सब इन्द्रियों को वशीकरण करने का उपाय हैं यह गृद्धता को वशीकरण करने का उपाय हैं अहो! रोटियों के टुकड़े के पीछे दीनता प्रकट मत करना श्रावक के व्रतों को पालन करने वाले को आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी व समतंभद्र स्वामी ने महाव्रती सदृश कहा हैं ध्यान रखना, पाषाण के भगवान् की आराधना भी उतना ही फल देती है जितनी साक्षात् परमात्मा की आराधना फलती है, ऐसा आचार्य पद्मनंदी स्वामी ने "पद्मनंदी पंचविंशतिका” में कथन किया हैं अहो! पंचमकाल के मुनियों में तुम चतुर्थ काल को निहारो, तुम्हें वही पुण्य मिलेगा जो चतुर्थकाल के मुनियों की वन्दना में मिलता हैं पर इतना ध्यान रखना कि अपने मन को खट्टा नहीं करना, क्योंकि खट्टे मनों से कभी भगवान् नहीं बन सकतें एक साँप डाल रहा है और एक साँप निकाल रहा हैतो भी वह कह रहे हैं, अहो! यह भी भटकता
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