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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 416 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
तो मोक्षमार्ग में बाधक हैं अहो! दूर रहना तो सूर्य बनकरं कितनी दूर है, पर सबको प्रकाश दे रहा हैं लेकिन पास में रह कर भी अंधेरा हो तो जीवन में कोई सार नहीं हैं इसलिए पास रहकर उपवास करना, लेकिन उपवास करके दूर मत हो जाना, क्योंकि आप ममता माँ की बातों में चले गए थे यह जिनवाणी समता की माँ हैं ममता की माँ ढकेल सकती है, दूर भगा सकती है पर, भो चैतन्य समता की माँ तुझे संयम के पालने में ही थपकियाँ लगाएगी इसलिए ममता की माँ छूटती है तो छूट जाए, पर समता की माँ को नहीं छोड़नां अहो मनीषियो! ध्यान रखना, माँ जिनवाणी की गोद में खेलने का पात्र वही होता है, जो यथाजातरूप होता हैं तुम जब जन्मे थे तब निर्विकार थे, इसलिए हमारे जिनशासन में निग्रंथ मुनिराज को यथाजात कहा हैं यथाजात को देखने में किसी को विकार नहीं आते, कोई आँख नहीं सिकोड़ता, नाक नहीं सिकोड़ता
श्री आदिनाथ जैन मंदिर, राणकपुर की कलाकृती
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