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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 392 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
"सामायिक है आत्मतत्त्व का मूल "
एवं विधमपरमपि ज्ञात्वा मुंचत्यनर्थदण्डं यः तस्यानिशमनवद्यं विजयमहिंसाव्रतं लभते 147
अन्वयार्थ : यः एवं विधम् जो पुरुष इस प्रकार के अपरमपि अनर्थदण्डं = अन्य भी अनर्थदण्डों कों ज्ञात्वा मुंचति जान करके त्याग करता हैं तस्य अनवद्यं उसके निर्दोषं अहिंसाव्रतं अनिशम् अहिंसाव्रत निरंतरं विजयम्
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लभते = विजय प्राप्त करता हैं
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राग द्वेषत्यागान्निखिलद्रव्येषु साम्यमवलम्ब्यं तत्त्वोपलब्धिमूलं बहुशः सामायिकं कार्यम्ं 148
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अन्वयार्थ :
रागद्वेषत्यागात् = रागद्वेष के त्याग से निखिलद्रव्येषु = समस्त इष्ट-अनिष्ट पदार्थों में साम्यम् = साम्य भाव को अवलम्ब्य = अंगीकार करं तत्त्वोपलब्धिमूलं = आत्मतत्त्व की प्राप्ति का मूल कारणं सामायिकं = सामायिकं बहुशः कार्यम् = अनेक बार करना चाहिए
अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावन - पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने संकेत दिया कि, मनीषियो! जीवन में अपयश का हेतु जुआ हैं जिसके अंतरंग में निर्मलता है, वह कभी दाँव नहीं लगाता हैं धन के माध्यम से जुआ खेलनेवालों ने मात्र जड़ - द्रव्य को दाँव पर लगाया है, पर तुमने वासनाओं के कारण अनंत भवों को दाँव पर लगा दिया हैं मैं किसी से कम नहीं हूँ, मैं तुम्हारे
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