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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 387 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
कितने निर्मल हैं, जो यह विचार कर रहा है कि जिसने मुझे जन्म दिया, मुझे इतना बड़ा किया हैं तो मेरा भी कर्तव्य बनता है कि उनकी अंतिम श्वासों में उनको पंच परमेष्ठी का उच्चारण कराके शुद्ध अवस्था की ओर ले जाऊँ दुनियाँ की सुनोगे तो कभी तुम धर्म भी नहीं कर पाओगें
भो ज्ञानी! यदि मेहमान भी आये तो एक बाल्टी में पानी प्रासुक कर के दे देना, कह देना-भैया! इतने से ही तुम्हें काम चलाना हैं यदि पानी पीने बैठे तो मटका भरकर रख देना कि कितना ही पी लो, लेकिन व्यर्थ फैलाने के लिए नहीं है हमारे घर में ध्यान रखना, किसी को चाकू, छुरी मत दे देनां उन्होंने साग बना दी, कीड़ा अंदर है, उसके दो टुकड़े हो गयें इसलिए समझना शुद्धि करने के लिये बहुत-कुछ नहीं चाहिए पड़ता, शौक करने के लिये बहुत-कुछ करना पड़ता हैं
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श्री विमलनाथ भगवान, श्री कम्पिलाजी तीर्थ छेत्र
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