________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 388 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
'त्यागो दुःश्रुति व द्यूतक्रीड़ा'
रागादिवर्द्धनानां दुष्टकथानामबोधबहुलानाम् न कदाचन कुर्वीत श्रवणार्जनशिक्षणादीनिं 145
अन्वयार्थ : रागादिवर्द्धनानां = रागद्वेष मोहादि को बढ़ानेवाली ( तथा ) अबोध बहुलानाम् = बहुत करके अज्ञानता से भरी हुईं दुष्टकथानाम् = दुष्ट कथाओं कां श्रवणार्जन शिक्षणादीनि = सुनना सुनाना, पढ़ना, पढ़ाना ( आदि ) कदाचन = किसी भी समयं नकुर्वीत = न करें
सर्वानर्थप्रथमं मथनं शौचस्य सद्म मायायाः दूरात्परिहरणीयं चौर्यासत्यास्पदं द्यूतम् 146
अन्वयार्थ : सर्वानर्थप्रथमं = सप्तव्यसनों का प्रथम अथवा सम्पूर्ण अनर्थों का मुखियां शौचस्य मथनं = संतोष का नाश करने वाला मायायाः = मायाचार कां सद्म = घर और चौर्यासत्यास्पदं =चोरी तथा असत्य का स्थानं द्यूतम् = जुआ कां दूरात् = दूर से ही परिहरणीयं = त्याग कर देना चाहिये
मनीषियो! अन्तिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्रस्वामी ने बहुत ही अनुपम सूत्र दिया हैं जिसका चित्त निर्मल नहीं होता, उसके प्रमाद के योग से प्रभुवाणी अन्तरंग में प्रवेश नहीं कर पाती जिस जीव के अन्तरंग में कषाय-परिणति या अपध्यान चल रहा है, वह जीव क्रिया के करने पर भी क्रिया के फल को प्राप्त नहीं कर पाता हैं यह जीव की दशा हैं
भो ज्ञानियो! आँखें दो ही हैं, पर दृष्टियाँ अनेक हैं देखो, दृष्टि नीचे देखने को है तो अपध्यान, ऊपर देखने को है तो धर्मध्यानं चकोर जमीन पर रहकर आकाश में देखता है और चील आकाश में उड़कर भी जमीन पर देखती हैं ऐसी ही योगी और भोगी की दृष्टि हैं एक जीव संसार में बैठकर सिद्धत्व को निहार रहा है और एक जीव मनुष्य-पर्याय प्राप्तकर सप्तव्यसनों को निहार रहा हैं आँखें दो हैं, दृष्टियाँ अनेक हैं आँख
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com