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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 386 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
यह चरणानुयोग चर्या को देखकर कहता है कि तेरी निर्मल परिणति त्रैकालिक संभव नहीं है, क्योंकि सप्त व्यसन का सेवन कर रहे हों बाई अभक्ष्यों को खा रहे हो, और कहो कि मैं तो शुद्ध स्वरूप में लीन रहता हूँ तो यह त्रैकालिक संभव नहीं हैं अहो! असमय में पके फल को तो खा भी मत लेनां जो असमय में टपक जाता है, वह खतरनाक होता हैं शोक के समय हास्य की बात करना शोभा नहीं देता, वैराग्य के समय राग की बात करना शोभा नहीं देता; क्योंकि तुम असमय में बात कर रहे हों
भो ज्ञानी! मोक्षमार्ग घातक नहीं है, मोक्षमार्ग पर शिथिलाचार का जहर टपक जाये, तो वह घातक हो गयां शिथिलाचार की बूंदों से बचों फल अभी नहीं है परन्तु यदि वृक्ष है, तो जब मौसम आयेगा, तो फल भी लग जायेंगें मोक्ष मार्ग तो है, मोक्ष नहीं है; मौसम आएगा तो मोक्ष भी हो जायेगां इसलिये वृक्ष की सुरक्षा रखना, वृक्षों को काटकर फेंक दोगे तो काललब्धि भी नहीं आयेगीं मौसम आ भी जायेगा, लेकिन द्रव्य नहीं होगा तो फल कैसे आएँगे? जब बाहर जाते हो तो स्टेशन पर गाड़ी के इंतजार में बैठना पड़ता है, ऐसे ही पंचमकाल में रत्नत्रययुक्त निग्रंथ-मुद्रा एक स्टेशन है, जब चतुर्थकाल आयेगा तो गाड़ी आ जायेगी धैर्य का फल मीठा होता है, इसलिये धैर्य रखों मनीषियो! आप गृहस्थ हो, यदि बिना प्रयोजन के पृथ्वी को खोद रहे हो या कोई अस्त्र-शस्त्र मिल गया तो मिट्टी उखाड़ रहे हो, अहो! एक गर्भवती के गर्भ गिराने में हिंसा का जो पाप लगता है, मात्र एक अंगुल भूमि के खोदने में उतनी ही हिंसा का पाप लगता हैं ऐसा आचार्य अमितगति स्वामी ने "सुभाषित रत्न संदोह' ग्रंथ में कहा है-'गर्भवती माँ एक-दो संतान मात्र रखती होगी यह पृथ्वी गर्भवती माँ है, जो अपनी कोख में अनन्त जीवों को रखती हैं केचुएं, लट आदि कितने सारे जीव हैं
भो चैतन्य! यह श्रावक की चर्या हैं जब मुनिचर्या का कथन करेंगे, तो कहेंगे षट्काय जीव अनंत हैं अतः आपको बिना प्रयोजन के कार्य नहीं करना चाहियें प्रयोजन में भी विवेक रखना जहाँ चुल्लू भर पानी का काम हो, वहाँ बाल्टी भर पानी मत फेंकनां अहो ज्ञानियो! हाथ में डंडा मिल गया तो रास्ते में पत्तों को मारते चले जा रहे हैं, उसके प्राण नहीं हैं क्या ? वह जीव नहीं है क्या ? यदि अज्ञानता में ऐसा अपराध हो गया हो, तो प्रायश्चित कर लेनां दूबा पर चलो तो नेत्रों की ज्योति बढ़ जायेगी अहो सोचो! उस दूबा के नीचे कितने नेत्रों की ज्योति विलीन हो रही है ? घर, दुकान, गाड़ी-घोड़ा सब को नहला रहे हो और एक व्यक्ति प्यासा तड़प रहा है, जिसको पानी पीने को नहीं मिल रहा हैं कर लो मौज, लेकिन ध्यान रखना "सिंधु-नीर तैं प्यास न जाये, तो पण एक न बूंद लहाएं" वे दिन भी आयेंगें आज तुम अति कर रहे हों नल की टोंटी खोलकर बैठ गयें अहो! जैसे घृत/तेल का प्रयोग करते हो, वैसे पानी का प्रयोग किया करों विवेक से काम लों दूसरे की सोच से आप सोचोगे, तो दुःखी हो जाओगे, संसार में शांति से नहीं जी पाओगें बेटे की भावना है कि मेरे पिताजी, माताजी, दादा-दादी की अंतिम श्वासें धर्म-ध्यान से निकलें उधर कोई व्यक्ति पहुँच गये, क्यों बेटा! तुम माँ को मारना चाहते हो क्या जो कि महाराज के पास रख दिया? अहो ज्ञानी । उसके भाव
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