________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 371 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 लेकिन सबसे बड़ा आनंद का संवेदन उस विद्वान ने किया, उस संत के चरणों में किया कि 'कुछ नहीं कर रहे हैं और कुछ नहीं हैं।
भो ज्ञानी! ध्यान रखना, योगी का पुरुषार्थ यही चलना चाहिए कि, भगवन्! वह दिन कब आए जब मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ें उसी को कहते हैं कृत-कृत्य-अवस्थां जो कुछ करना था, सब कुछ कर चुके उस अवस्था का अभ्यास जो किया जाता है, उसका नाम होता है ध्यानं लेकिन, ध्यान लगेगा तभी, जब अहंकार/अभिमान, अभक्ष्य छूट जायेंगें आज उपदेश दे रहा हूँ-अरे! पड़ोसी से जैसी ईर्ष्या होती है, वैसी ईर्ष्या मुनियों से करनी चाहिए कि देखो हम इतने अच्छे कपड़े पहने हैं, फिर भी हम नीचे फर्श पर बैठे हैं और ये नग्न ऊपर बैठे हैं, चलो हम भी ऊपर बैठते हैं लेकिन ध्यान रखना, उतारकर ही बैठनां इससे ज्यादा ईर्ष्या भगवान् से करों पाषाण की प्रतिमाएँ ऐसे क्यों पुज रहीं है? उनसे पूछ लेना कि तुमने ऐसा कौन-सा काम किया था जो आज तुम नहीं हो, फिर भी तुम भगवान् के रूप में पुज रहे हो? तो वे कह देंगे कि हमने विषय, कषाय और अज्ञानता का नाश किया, तो भगवान् बन गयें तुम भी अज्ञान का नाश कर दो तो तुम भी भगवान् बन जाओगे, तुम भी पुजना प्रारंभ हो जाओगें परंतु सबसे पहले रात्रि भोजन छोड़ दो ओहो! महाराज, आपको जितनी सुनाना है उतनी सुनाते जाओ, हम सुनते जा रहे हैं, परन्तु त्याग का नाम मत लेनां मालूम चल गया कि तुम कितने पानी में हों कितने ही कुतर्क रख लेना, सब निष्फल हैं अतः सूर्यप्रकाश के अभाव में रात्रिभोजन छोड़ देना चाहिएं वहाँ हिंसा कैसे नहीं होगी? कोई यों कहे कि हम तो दीपक जला लेंगें लोक में रात्रि भोजन करना है और डर लगा है उसको कि भोजन रात्रि में ना करना पड़े, इसीलिए अपना दीपक ढ़क दिया चलनी से, और कहता है कि बस अब तो मैंने सूर्य के प्रकाश में भोजन किया हैं यह मायाचारी है, कोई आगम -प्रमाण नहीं दीपक के प्रकाश में, बिजली की रोशनी में कितने सारे जीव आते हैं, रात्रिभोजन के साथ उन जीवों का भी विघात होता हैं रात्रि में विभिन्न प्रकार के (वर्ण के) जीव होते हैं, वे भोजन सामग्री में मिल जाते हैं और सारे के सारे तुम्हारे उदर में पहुँच जाते हैं मुख में मकड़ी चली जाये तो कुष्ठ रोग हो जाता है, जुवां भोजन में आ जाए तो जलोदर रोग हो जाता है, मक्खी चली जाये तो वमन हो जाता हैं इसीलिए दीपक आदि के प्रकाश में भोजन नहीं करना चाहिए, मात्र सूर्य के प्रकाश में ही भोजन करना चाहिएं जो मन, वचन, काय से रात्रिभोजन का त्याग करता है वह रस, फल, दुग्ध, पानी ये जितने पदार्थ हों, औषधियाँ हों या फल-फूल हों, मेवा मिष्ठान हों, लौंग-इलायची हो, नहीं ले सकतां आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी का हेतु है कि नव कोटि से चारों प्रकार के आहार का त्यागं जो किसी प्रकार की छूट नहीं रखता, वही हमेशा अहिंसा का पालन करता हैं जो एक भी प्रकार की छूट रखता है, उसका अहिंसा का पालन नहीं होता हैं
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com