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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 37 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
से निकला, जिनवाणी के पास से गुजरा, निग्रंथ गुरुओं के पास बैठा, सत्संग किया, लेकिन फिर उड़ा तो बैठा कहाँ ? गिद्ध की तरह या तोते की तरहं तुमने दान दिया, नाम अंकित करायां नाम अंकित नहीं हुआ या जहाँ तुम चाहते थे वहाँ अंकित नहीं हुआ, तो बोले कि- महाराज! मैं नहीं आऊँगा प्रवचन- सभा में, रूठ गये एक ओर था चिंत्तामणि रत्न और एक ओर था 'खली का टुकड़ा तुम आज भी चिंतामणी रत्न को छोड़कर खली का टुकड़ा न मिलने पर नाराज हो, धर्मायतन को छोड़ने तैयार हों तो समझो, तुमने अभी निश्चयनय को भूतार्थ और व्यवहारनय को अभूतार्थ जाना ही नहीं हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि- भूतार्थ के बोध से विमुख जो कुछ भी निश्चय-व्यवहार को जानते हैं, वह सर्वोऽपि(समस्त) संसार स्वरूप ही हैं।
अहो! किसी ने अर्घ चढ़ाना धर्म मान लिया, किसी ने अर्घ हटाना धर्म मान लिया, किसी ने आरती उतारी, किसी ने आरती फेंक कर धर्म मान लियां अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं-भूतार्थ से विमुख हे ज्ञानी! आरती उतारने राग, और अर्घ हटाने/आरती फेंकने में जो द्वेष हुआ है, हो रहा है, यह तो धर्म से विमुख होना हैं अतः, भूतार्थ को समझो और उतारना है तो कषाय को उतारों अंदर-बाहर की कषाय उतर जायेगी तो भूतार्थ समझ में आ जायेगां व्यवहारनय स्वतः अभूतार्थ हो जायेगा, क्योंकि वह तो था ही तात्कालीन प्रयोजनवान्
OURUDE
Bhagwan Chandraprabhu, Tijara
भगवान श्री चंद्र प्रभु स्वामी, तिजारा (राजस्थान)
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