SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 38 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v-2010:002 "द्रव्य व द्रव्य दृष्टि" अबुधस्य बोधनार्थ मुनीश्वराः देशयन्त्यभूतार्थम् व्यवहारमेव केवलमवैति यस्तस्य देशना नास्ति अन्वयार्थ : मुनीश्वराः अबुधस्य = ग्रन्थकर्ता आचार्य, अज्ञानी जीवों कों बोधनार्थ = ज्ञान उत्पन्न करने के लिये अभूतार्थ देशयन्ति = व्यवहारनय का उपदेश करते हैं औरं यः केवलं= जो जीव केवलं व्यवहारम् एव अवैति = व्यवहारनय को ही साध्य जानता हैं तस्य देशना नास्ति = उस मिथ्यादृष्टि जीव के लिये उपदेश नहीं हैं माणवक एव सिंहो यथा भवत्यनवगीतसिंहस्य व्यवहार एव हि तथा निश्चयतां यात्यनिश्चयज्ञस्य । अन्वयार्थ : यथा = जैसें अनवगीतसिंहस्य = सिंह को सर्वथा नहीं जाननेवाले पुरुष कों माणवकः एव = बिल्ली ही सिंह: भवति = सिंहरूप होती हैं हि तथा = निश्चय करके उसी प्रकारं अनिश्चयज्ञस्य = निश्चयनय के स्वरूप से अपरिचित पुरुष के लिये व्यवहार एव = व्यवहार ही, निश्चयतां याति = निश्चयनय के स्वरूप को प्राप्त होता मनीषियो! भूतार्थदृष्टि ही सत्यार्थदृष्टि हैं व्यवहार को अभूतार्थ कहने का आचार्य महाराज का उद्देश्य लोक- व्यवस्था भंग करना नहीं हैं व्यवहार को अभूतार्थ कहने का उद्देश्य आचार्य महाराज का यह है कि कहीं 'घी का घड़ा' वाक्य से चलने वाले व्यवहार को सुनकर कोई भोला जीव 'घी से निर्मित घड़े को 'निश्चय' में न ले, क्योंकि घी से निर्मित घड़ा होता ही नहीं है, अभूतार्थ है, असत्यार्थ हैं जब तुम कहीं बाहर जाते हो तो रिक्शेवाले का नाम तो मालूम नहीं होता है, दूर से ही चिल्लाते हो-ऐ रिक्शा! तो रिक्शा खड़ा हो जाता हैं मनीषियो! यही व्यवहार की व्यवस्था हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy