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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 367 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
"साधना से साध्य की सिद्धि "
अर्कालोकेन विना भुञ्जानः परिहरेत् कथं हिंसां अपि बोधितः प्रदीपे भोज्यजुषां सूक्ष्मजीवानाम् 133
अन्वयार्थ :
अर्का लोकेन विना सूर्य के प्रकाश के विना अर्थात् रात्रि में भुञ्जानः
भोजन करने वाला पुरुषं बोधितः
प्रदीपे अपि = जलाये हुए दीपक में भीं भोज्यजुषां = भोजन में मिले हुएं सूक्ष्मजीवानाम् = सूक्ष्म जंतुओं कीं हिंसा कथं परिहरेत् = हिंसा को किस प्रकार दूर कर सकेगा?
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किं वा बहुप्रलपितैरिति सिद्धं यो मनोवचनकायैः परिहरति रात्रिभुक्ति सततमहिंसां स पालयति 134
अन्वयार्थः
वा बहुप्रलपितैः = अथवा बहुत प्रलाप सें किं यः = क्या ? जो पुरुषं मनोवचनकायैः = मन, वचन और काया सें रात्रिभुक्ति परिहरति = रात्रि भोजन को त्याग देता हैं सः सततं अहिंसां = वह निरंतर अहिंसा कों पालयति इति सिद्धं = पालन करता है, ऐसा सिद्ध हुआ
इत्यत्र त्रितयात्मनि मार्गे मोक्षस्य ये स्वहितकामा: अनुपरतं प्रयतन्ते प्रयान्ति ते मुक्तिमचिरेणं 135
अन्वयार्थ :
इति अत्र = इस प्रकार इस लोक में ये स्वहितकामाः = जो अपने हित के इच्छुकं माक्षस्य = मोक्ष कें त्रितयात्मनि, मार्गे =रत्नत्रयात्मक मार्ग में अनुपरतं = सर्वदा अटके बिनां प्रयतन्ते ते = प्रयत्न करते हैं वे पुरुषं मुक्तिम् अचिरेण प्रयान्ति = मुक्ति को शीघ्र ही गमनकरते है
भो मनीषियो! भगवान् महावीर स्वामी की पावन - पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने आलौकिक सूत्र दिया कि जीवन में जब अध्यात्म का सूत्रपात होता है, तो बहिरात्मपने का विनाश सदैव के लिए हो जाता हैं बहिरात्म - दशा का जब तक विनाश नहीं है, तब तक, मनीषियो !
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