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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 366 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 ऐसा निकला कि पिताजी को ही बंदीगृह में डाल दियां उसमें भी संक्लेषता नहीं करना; लेकिन सुधारने के विचार मत रखनां सुधार उसके उपादान से होगा और आपने समझाने को सुधार मान लिया तो संक्लेषता आपकी बढ़ेगी आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने पूर्व सूत्र में कहा था कि तीव्र राग के वश दिन-रात भोजन करता है, इसमें हिंसा तो होती हैं यह तो जैन- आगम हैं वैदिक-दर्शन के 'मार्कण्डेय पुराण' में भी लिखा है-दिन का नाथ अर्थात सूर्य के अस्त होते ही पानी रुधिर (रक्त) के तुल्य हो जाता है और अन्न माँस का पिण्ड हो जाता हैं आज आप त्याग करो या न करो, पर एक नियम ले लो, कि जब भी भोजन करने रात्रि में बैठो उस समय इतना सोच लेना कि मैं क्या खा रहा हूँ ? क्या पी रहा हूँ ? और पुरुषाथ- सिद्धि की एक सौ बत्तीसवीं कारिका का ध्यान कर लेना कि मेरे मुख में क्या जा रहा है ? जिस व्यक्ति ने पंद्रह दिन के लिये रात्रिभोजन का त्याग कर दिया, उसने सात दिन का उपवास कर लियां जिसने एक महिने का रात्रिभोजन का त्याग कर दिया, उसे पंद्रह दिन का उपवास का पुण्य मिलता हैं एक साल तक जिसने रात्रिभोजन का त्याग कर दिया तो छह महिने के उपवास का फल मिल रहा हैं इतने बड़े लाभ को तुम ऐसे ही छोड़ दोगे ? भैया! अंतरंग में रागदृष्टि रहेगी, तब तक छूटने वाला नहीं हैं चिन्तवन करना, सोचना और अपनी पर्याय को धिक्कार लेना कि, हे भगवान! धिक्कार हो, ऐसी मानव-पर्याय प्राप्त करके मैं तिथंच जैसी प्रवृत्ति कर रहा हूँ इसीलिए ध्यान रखो, दिन के भोजन करने में राग कम होता है, रात्रि के भोजन करने में राग तीव्र होता हैं अतः, जो भी रात में अन्न के ग्रास को खाता है, वह माँस के टुकड़े को खा रहा हैं अब स्वयं सोचना, स्वयं समझना कि हमारी दशा क्या है? बस, मत बनो निशाचरं
॥श्री शांती-जेमी-पार्य जिनेंद्राय नमो नमः।।
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