________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 331 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"उभय परिग्रह के अभाव में फलती है अहिंसा"
मिथ्यात्ववेदरागास्तथैव हास्यादयश्च षड्दोषाः
चत्वारश्च कषायाश्चतुर्दशाभ्यन्तरा ग्रन्थाः116 अन्वयार्थः मिथ्यात्ववेदरागाः = मिथ्यात्व; स्त्री, पुरुष और नपुंसकवेद के रागं तथैव च = और इसी प्रकारं हास्यादयः षड्दोषाः च = हास्यादिक (अर्थात् हास्य, रति, अरति, शोक,भय, जुगुप्सा) छह दोषं चत्वारः कषायाः = चार कषायभाव ( अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ अथवा अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरणीय, प्रत्याख्यानावरणीय और संज्वलन) आभ्यन्तरा ग्रन्थाः चतुर्दश = अन्तरंग-परिग्रह के चौदह भेद हैं
अथ निश्चित्तसचित्तौ बाह्यस्य परिग्रहस्य भेदौ द्वौं
नैषः कदापि सडंग: सर्वोऽप्यतिवर्तते हिंसाम्117 अन्वयार्थः अथ = इसके बाद ( अनन्तर ) बाह्यस्य परिग्रहस्य = बहिरंग परिग्रह के निश्चित्त सचित्तौ = अचित्त और सचित्त यें द्वौ भेदौ = दो भेद हैं एषः सर्वः अपि = ये समस्त ही सडंगः = परिग्रहं कदापि हिंसाम् न अतिवर्तते = किसी काल में भी हिंसा का उल्लंघन नहीं करते (अर्थात् कोई भी परिग्रह किसी समय हिंसा-रहित नहीं
उभयपरिग्रहवर्जनमाचार्याः सूचयन्त्यहिंसेति
द्विविधपरिग्रहवहनं हिंसेति जिनप्रवचनज्ञा118 अन्वयार्थः जिनप्रवचनज्ञाः आचार्याः = जैनसिद्धान्त के ज्ञाता आचार्य उभयपरिग्रहवर्जनम् =दोनों प्रकार के परिग्रह के त्याग को अहिंसा इति = अहिंसा, ऐसें द्विविध परिग्रहवहनं = दोनों प्रकार के परिग्रह के धारण को हिंसा इति सूचयन्ति = हिंसा, ऐसा सूचन करते हैं
भो मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान् वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद स्वामी ने अलौकिक सूत्र प्रदान किया है कि ममत्वदशा आत्मा की वीतराग दशा की शत्रु हैं जीव के
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com