________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 330 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् कह रहे हैं - परिग्रह के सद्भाव में सम्यक्दर्शन कुछ नहीं कर पायेगां परिग्रह जिसका उतर गया, वहाँ सम्यक्त्व की चर्चा करने की आवश्यकता ही नहीं है, वहाँ तो नियम से सम्यक्दर्शन होगा ही, क्योंकि पहला परिग्रह मिथ्यात्व हैं इसलिये उभय परिग्रह का त्यागी ही सम्यकदृष्टि हैं वही सम्यक्ज्ञानी और सम्यक्चारित्र वाला हैं भो चेतन ! जो दिखता है, वह द्रव्यलिंग है; पर जो होता है, वह भावलिंग हैं इसलिये द्रव्यलिंग होना जरूरी हैं बिना द्रव्यलिंग के भावलिंग की पहचान नहीं होतीं ऐसा आचार्य इंद्रनंदि स्वामी ने 'इंद्रनंदी - नीति सार' ग्रंथ में लिखा हैं जैसे, देश में सिक्के की कीमत मुद्रा (सील) से होती है, ऐसे ही दिगम्बर मुद्रा की कीमत पिच्छी - कमंडल से ही होती हैं अतः जब भी मोक्ष मिलेगा, तो पिच्छी - कमंडल से ही मिलेगां
रामाला सव्वसाहूरा
श्री मंदिर, कुचा शेठ, दरीबा कलां, दिल्ली
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com