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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 329 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 श्रद्धा गुण है; उसका विनाश नहीं हैं सम्यकदृष्टि श्रावक जब व्यापार कर रहा होता है, तब उपयोग तो व्यापार में लगा हुआ है, परंतु उसका सम्यक् श्रंद्धान उसका विचलित नहीं है, तो वहाँ पर निर्जरा हो रही हैं सम्यक्दृष्टि जीव सम्यक गुण से समन्वित होने से मिथ्यात्व संबंधी जो आस्रव हो रहा है, उसका वह वहाँ पर संवर भी कर रहा हैं लेकिन वहाँ भोगों से संवर व निर्जरा नहीं है, सम्यकदर्शन से ही संवरा व निर्जरा कर रहा हैं भोगों से निर्जरा नहीं है, वह श्रद्धा-गुण के कारण निर्जरा है, पर असंयमसंबंधी आस्रव अभी भी जारी ही हैं
भो चैतन्य! जितने अंश में श्रद्धा काम कर रही है, उतने अंश में बंध नहीं है; पर जितने अंश में राग है, उतने अंश में बंध हैं जितने अंश में सम्यकज्ञान है, उतने अंश में बंध नहीं है; पर जितने अंश में राग है, उतने अंश में बंध हैं जितने अंश में सम्यकचारित्र है उतने अंश में बंध नहीं है; पर जितने अंश में राग है, उतने अंश में निश्चित बंध हैं इसलिये, पुनः समझना भगवान् कुंदकुंददेव का अभिप्राय कि भोग भोगते भी निर्जरा होती हैं जैसे, व्यापारी को व्यापार में, रागी को राग में जो आनंद आता है, योगी को भी वीतराग-भाव में वही आनंद आता हैं वह वीतरागी निज चेतन-रमणी का भोग भोगता हैं रागी विषय-रमणी का भोग भोगता हैं, वह भोग भोगते बंधता है और वीतरागी निज रमणी के भोग से निबंधता को प्राप्त हो जाता हैं उसे भोग भोगने से निर्जरा कही है, परंतु संसार की रमणियों में रमण करने से निर्जरा नहीं कही हैं वीतराग सम्यकदृष्टि जीव वहाँ निजानन्द का उपभोग करते-करते कमों की निर्जरा करता हैं जब तक निजानन्द का भोग नहीं होगा, तब तक शुद्ध उपयोग की दशा नहीं बनेगी जब तक शुद्ध उपयोग की दशा नहीं बनेगी, तब तक जैसी निर्जरा मोक्षमार्ग में होना चाहिये; वैसी निर्जरा नहीं होगीं
भो ज्ञानी । सम्यकदर्शन कहता है कि पूर्णता तो तभी होगी, जब मैं चारित्र के शिखर पर बैठा दंगां क्योंकि मात्र सम्यकदर्शन मोक्षमार्ग नहीं है, "सम्यकदर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" जहाँ तीनों की एकता होती है, उसका नाम मोक्षमार्ग हैं प्रत्येक मोक्षमार्ग नहीं हैं इसलिये पंडित टोडरमल जी ने भी 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में लिखा है- 'सम्यकदृष्टि मोक्षमार्गी होसी', अर्थात् सम्यकदृष्टि मोक्षमार्गी नहीं है, होगा; अभी उपचार से मोक्षमार्ग हैं भो चेतन ! सम्यकदर्शन बीज है, यह नकार मत देनां पर यह बीज तभी फलित होगा, जब चारित्र की भूमि में बोया जायेगां सम्यकदर्शन मोक्षफल देने वाला नहीं हैं उसे आपको चारित्र की मिट्टी में डालना ही पड़ेगां आचार्य योगीन्दुदेव स्वामी ने लिखा है-अहो ज्ञानी ! पिच्छी-कमन्डलों के ढेर लग गये, लेकिन मोक्ष नहीं हुआं हे योगी ! पिच्छी-कमंडल लेने से मोक्ष नहीं मिलता, लेकिन ध्यान रखना, बिना पिच्छी-कमंडल लिये भी मोक्ष नहीं मिलतां इसलिये, 'सम्यक्दर्शन अभी प्राप्त कर लें, फिर पिच्छी-कमंडल ले लेंगे'-यह कथन दिगम्बर आम्नाय का नहीं हैं ध्यान रखना, अर्द्ध पुद्गलपरावर्तन काल के अंदर-अंदर उसका मोक्ष होगा, लेकिन तभी होगा जब नियम से निग्रंथ-योगी बनेगां
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