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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 33 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
"भूतार्थ दृष्टि"
निश्चयमिह भूतार्थं व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् भूतार्थबोधविमुखः प्रायः सर्वोऽपि संसारः 5
अन्वयार्थ :
= व्यवहारनय को
इह = इस (ग्रंथ में ) निश्चयं भूतार्थं = निश्चयनय को भूतार्थं व्यवहारं अभूतार्थं अभूतार्थं वर्णयन्ति = वर्णन करते हैं प्रायः = प्रायः भूतार्थबोधविमुखः : भूतार्थ अर्थात् निश्चयनय के ज्ञान से विरुद्ध जो अभिप्राय है वहं सर्वोऽपि = समस्त ही संसारः = संसारस्वरूप हैं
=
मनीषियो जगत में धर्मतीर्थ का प्रवर्तन वही करा सकता है जो निश्चय और व्यवहार नयों का ज्ञाता हो और दोनों नयों को आधार मानकर चलें एक नय का ही आश्रय करने वाला कभी भी धर्मतीर्थ को न तो समझ सकेगा और न ही प्रवर्तित कर सकेगा जो धर्मतीर्थ को ही नहीं समझ सका वह आत्मतीर्थ को भी नहीं समझ सकतां आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने "पुरुषार्थ सिद्धयुपाय" ग्रंथ की चौथी कारिका में यही बात कही कि मुख्य और उपचार के कथन द्वारा ही शिष्यों का दुर्निवार अज्ञान - भाव नष्ट किया जा सकता है तथा निश्चयनय और व्यवहारनय के जानने वाले आचार्य ही धर्म तीर्थ को जगत में प्रवर्तित करते हैं
भो ज्ञानी! "आलाप पद्धति" में आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं कि प्रमाण के द्वारा सम्यक् प्रकार ग्रहण की गई वस्तु के एक धर्म को अर्थात् अंश को ग्रहण करने वाले ज्ञान को नय कहते हैं अध्यात्म - भाषा में मूलरूप से नय के दो भेद हैं- निश्चयनय और व्यवहारनयं निश्चयनय का विषय 'अभेद' है, व्यवहारनय का विषय 'भेद' हैं अभेद के विषय के आधार पर भी निश्चयनय के दो भेद होते हैं जो नय कर्मजनित - विकार से रहित गुण - गुणी को अभेदरूप से ग्रहण करता है, वह शुद्ध निश्चय नय है, जैसे "केवलज्ञानस्वरूपी जीव अथवा केवलदर्शनस्वरूपी जीवं" जो नय कर्म -जनित, विकार सहित गुण-गुणी को अभेद रूप से ग्रहण करता है, वह अशुद्ध निश्चयनय है, जैसे मतिज्ञानादि - स्वरूपी जीव अथवा रागद्वेषी जीवं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी इस ग्रंथ की पाँचवीं कारिका में नय की बहुत गहरी गुत्थी को सुलझाने जा रहे हैं जिससे वर्द्धमान स्वामी के तीर्थकाल में शिष्यों का दुर्निवार अज्ञानांधकार नष्ट होकर जगत में धर्मतीर्थ का प्रवर्त्तन पंचमकाल के अंत तक चलता रहें
भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचंद्र महाराज इस कारिका में निश्चयनय को भूतार्थ और व्यवहार- नय को
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