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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 323 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"ममत्व का हेतु परद्रव्य है"
यद्येवं भवति तदा परिग्रहो न खलु कोऽपि बहिरंग: भवति नितरां यतोऽसौ धत्ते मूर्छा निमित्तत्त्वम् 113
अन्वयार्थः यदि एवं = यदि ऐसां भवति = होता (अर्थात् मूर्छा ही परिग्रह होता.) तदा खलु = तो निश्चय करके बहिरंगः परिग्रहः = बाह्य परिग्रहं कः अपि भवति न = कोई भी न होतां (सो ऐसा नहीं है,) यतः असौ = क्योंकि यह बाह्य परिग्रहं मूर्छा निमित्तत्त्वम् = मूर्छा के निमित्तपने कों नितरां घत्ते = अतिशयता से धारण करता हैं
एवमतिव्याप्तिः स्यात्परिग्रहस्येति चेदभवेन्नैवमं यस्मादकषायाणां कर्मग्रहणे न मूर्छास्तिं 114
अन्वयार्थः एवं परिग्रहस्य = इस प्रकार (बाह्य) परिग्रह की अतिव्याप्तिः स्यात् = अति व्याप्ति होती हैं इति चेत् = ऐसा कदाचित कहो तों एवं न भवेत् = ऐसा नहीं हो सकतां यस्मात् = क्योंकि अकषायाणां = कषायरहित (अर्थात् वीतरागी पुरुषों के) कर्म ग्रहणे = कार्माण-वर्गणा के ग्रहण में मूर्छा नास्ति = मूर्छा नहीं हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं उनकी पावन पीयूष देशना जन-जन की कल्याणी हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र दिया है कि 'जहाँ मूर्छा है, वहाँ परिग्रह हैं मूर्छा का नाम ही परिग्रह हैं द्रव्य की प्राप्ति पुण्य से होती है, लेकिन पाप की प्राप्ति परिणति से होती हैं अरे भाई! तू बाजार में सामग्री लेने जाता है तो द्रव्य को देता है, तभी तो द्रव्य मिलता हैं पुण्य का द्रव्य नहीं हैं तो विश्व में चले जाना, तुम्हें कहीं भी कुछ भी नहीं मिलेगां इसलिए इच्छाओं को कितना ही बढ़ा लो, इच्छा बढ़ाकर पाप का आस्रव तो कर सकते हो, लेकिन द्रव्य की प्राप्ति नहीं हो सकती
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