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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 321 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 क्योंकि वह निग्रंथ-दशा तो पुण्य और पाप के नाश के लिए थी परन्तु आपने निदान कर लिया कि मैं भी ऐसा बनूँ भो ज्ञानी! आगम को समझों देवसेन स्वामी ने 'भावसंग्रह' ग्रंथ में लिखा है सम्मादिट्ठी पुण्णं, ण होई संसारकारणं णियमां मोक्खस्य हेउ होउ जहवि णिदाणं ण कुणइं सम्यकदृष्टि जीव का पुण्य संसार का नहीं नियम से मोक्ष का ही कारण होता है, यदि निदान नहीं करता तो पुण्य संसार नहीं कराता, निदान संसार कराता हैं पुण्य के फल की लिप्सा (मोह) बंध का कारण हैं देह का मिलना बंध नहीं है, देह में चिपक जाना बंध हैं अहो ! जिनेंद्र की देशना को प्राप्त करके जो भोग-सामग्री जुटाये, उस जीव का क्या परिणाम होगा ? आकिंचन्य धर्म की चर्चा करके कंचन बनकर भीख मांग रहे हो? इतना नहीं, और कुछ होना चाहिएं अब सोचो, तूने आकिंचन्य धर्म को किंचन पर न्यौछावर कर दियां जिनवाणी सुनोगे तो कुछ सोचनां अहो आकिंचन स्वभावी आत्माओ! आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि द्रव्य, धन, धरती, कुटुम्ब, परिजन आदि पुण्य नहीं, रत्नत्रय-धर्म पुण्य हैं आचार्य भगवान् पूज्यपादस्वामी कह रहे हैं पुनात्यात्मानं पूयतेःनेनेति वा पुण्यम तत्सवेद्यादि पाति रक्षति आत्मानं शुभादिति पापमं तदसवेद्यादि (सर्वार्थ सिद्धि ६.३.६१४) जिससे आत्मा पवित्र होती है, उसका नाम पुण्य हैं आत्मा की रक्षा जिस पुण्य से होती है, उसका नाम पाप हैं जो मोक्ष जाने से तेरी रक्षा करता है, मनीषियो! उसका नाम पाप हैं भो भगवती आत्माओ! सोचो, पाँचवे पाप पर इतने मत रीझो कि सबकुछ नाश करके भी धन की प्राप्ति हो जायें कुल का ध्यान नहीं, वंश का ध्यान नहीं, परंपरा का ध्यान नहीं, आम्नाय का ध्यान नहीं यह भी विवेक नहीं कि क्या करना? शूद्रों के काम करने को तैयार हैं, पर पैसा आना चाहिए द्वार पर लिखा है "वर्धमान जिनेंद्राय नमः" और नीचे लिखा है "ब्यूटी पार्लर", यह क्या हो गया ? धिक्कार है जो उज्ज्वल कुल में जन्म लियां अरे! जिनशासन-जैसे उच्चकुल में जन्म लेकर भी तू शूद्रों के काम कर रहा है? मैं तो इसलिए कहता हूँ कि तुम्हें बुरा लग जाए, इसलिए नहीं कहता कि आप लोग खुश हो जाओं ज्ञानी आत्माओ! ध्यान रखना, जीवन निष्कलंक जीनां कदम छूट सकते हैं, परंतु कलंक त्रैकालिक नहीं छूटतां कलंकी जीवन, क्या जीवन है? मनीषियो! काजल की कोठरी में कितना भी सयाना जाए, दाग तो लगाकर ही आयेगां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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