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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 312 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 कभी मन में नहीं आता कि मैं इसको भी बनवा दूँ ? जब तक ऐसी दृष्टि नहीं आयेगी, तब तक तुम्हारी सम-दृष्टि नहीं हैं। भो ज्ञानी आत्माओ! तत्त्व को समझो, प्रपंचों में मत जाओ द्रव्य-दृष्टि को सोचो, यही वीतरागमार्ग है, अन्य सब व्यर्थ के मार्ग हैं जिस मार्ग में शान्ति हो, सुख हो, वही यथार्थ मार्ग हैं इसलिए आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि यदि आप धर्मात्माओं से विसंवाद करते हो, परस्पर में कलह करते हो, तो वह भी चोरी हैं अहो! हमारे महाराज, तुम्हारे महाराज, लगता है कि 'तत्वार्थ सूत्र' तक का अध्ययन नहीं हैं मनीषियों श्री जहाँ दिख गई, वहीं किलकिल होती है, जबकि धन में धर्म होता ही नहीं धन से धर्म के साधन तो उपार्जित किये जा सकते हैं, लेकिन धन से कोई धर्म माने, यह पूर्ण असत्य हैं यदि आप धन से धर्म मानते हैं, तो आपके साधु तो पूरे अधर्मात्मा हो जायेंगे, क्योंकि उनके पास तो धन होता ही नहीं है, वे धर्म कैसे करें? इसीलिए ध्यान रखना, धर्म भावों का विषय हैं भावों पर जीना, धन पर मत जीनां इसलिए परस्पर में कभी विसंवाद भी नहीं करना भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है कि जैसे गाय अपने बछड़े पर प्रेम करती है, दुलार करती है, ऐसे आप परस्पर में प्रेम से रहों यदि आपने तीर्थंकर देव की आज्ञा का उल्लंघन कर दिया तो वह चोरी हैं भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि इतना अनर्थ मत करना जिससे दूसरे के प्राण ही चले जायें मनीषियो! आपका दान क्षायोपशमिक दान हैं तीर्थंकर भगवान् का क्षायिक दान होता हैं उनकी वाणी का खिरना क्षायिक दान होता हैं अहो! भगवान् भी दान करते हैं श्रावक दान देता है तो साधु चर्या करते हैं और उस चर्या से साधु दान करते हैं, तो आपको उपदेश देते हैं यह "परस्परोपग्रहोजीवानाम" है, अर्थात् एक जीव दूसरे जीव का उपकार करता हैं इसलिए आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि, हे श्रावको! दूसरे के कुएँ, बावड़ी, जलाशय आदि का आप पानी पी सकते हो, शुद्धि के लिए मिट्टी ले सकते हो, लेकिन मुनिराज तिनके को भी जमीन से उठा कर दाँत को साफ नहीं कर सकते, क्योंकि वह पर-द्रव्य है, ऐसी मुनि की चर्या हैं अहो! ऐसा मत कह बैठना कि अब कोई पालन ही नहीं कर सकता, अब तो पंचमकाल में ऐसा हो ही नहीं सकतां भो ज्ञानी! आचार्य कुंदकुंद महाराज कोई चतुर्थकाल के मुनिराज नहीं थें आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी भी अभी के हैं इसलिए अपनी असमर्थता तो कहो, लेकिन अपनी असमर्थता को परमेष्ठी का अभाव मत कर देना जिनशासन पर करुणा रखना, "मोक्षमार्ग प्रकाशक" की पंक्तियाँ पढ़ लेना कि-"हंस पक्षी तो होता है, लेकिन हर पक्षी हंस तो नहीं होता है" अब निग्रंथ गुरु होते हैं, लेकिन सभी गुरु निग्रंथ दिख नहीं रहे, अब गुरु कहाँ से लाये? Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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