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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 313 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी! जिनवाणी का अपलाप मत करना पंचमकाल की श्वासों तक देव, शास्त्र, गुरु रहेंगे, उनके भक्त भी रहेंगे और अभक्त भी रहेंगें हमारे अन्य विद्वानों ने भी कितनी सुंदर बात लिखी है ते गुरु मेरे उर बसो, क्योंकि उस समय उनको मुनिराज नहीं दिख रहे थे, लेकिन तब उन्होंने यह नहीं लिखा था कि गुरु हैं ही नहीं भवोदधि- तारणहार (अर्थात् भव के सागर से पार कराने वाले) मुनियों का मध्यकाल में उत्तर भारत में अभाव हो गया था, लेकिन दक्षिण भारत में फिर भी मुनिराज थें कैसे भी हो, लेकिन मुनि परम्परा का विच्छेद नहीं हो पायां तीर्थंकर भगवन्तों की देशना है कि इक्कीस हजार वर्ष के पंचमकाल में जिनशासन चलेगा, अभी तो मात्र ढाई हजार वर्ष निकले हैं साढ़े अठारह हजार वर्ष तक कोई विकल्प मत करना कि धर्म नहीं है, धर्मात्मा नहीं हैं उतार-चढ़ाव आते हैं, आते रहेंगे लेकिन धर्म का विनाश नहीं होगां इसके बाद छठवाँकाल आयेगा तो इतना तो कर लो कि अपने को छठवेंकाल में नहीं जानां ग्रंथराज त्रिलोय पण्णति की उस गाथा को पुनः दोहरा लो कि जब तक सिकी सिकाई रोटियाँ खाने को मिलती रहेंगी, तब तक तुम भूलकर मत कह देना कि अब धर्म व धर्मात्मा नहीं हैं जिस दिन तुम्हें रोटी मिलना बंद हो जाए, अग्नि का लोप हो जाए, फिर तुम जरूर कह देना कि अब धर्म नहीं हैं जब तक भरत क्षेत्र में अग्नि है, तब तक जिनशासन जयवंत हैं
कमल मंदिर, हस्तिनापुर.
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