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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 236 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
है, बाल बिखर जाते हैं और अशुभ - कर्म शरीर पर प्रकट होता दिखता हैं यह कर्म - सिद्धांत मुनि को भी नहीं छोड़ता, तीर्थंकर को भी नहीं छोड़ता
भो ज्ञानी! कर्म सिद्धांत को ध्यान में रखों भगवान आदिनाथ स्वामी ने उसी पर्याय में राज्यकाल में पशुओं को आहार करने से रोकने के लिए उनके मुँह को बंधना (मुशीका लगवाया थां अत छह माह तक आहार - विधि नहीं मिली, क्योंकि सिद्धांत याने सिद्धांतं तीर्थंकर पार्श्वनाथ पर उपसर्ग आया, तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ पर उपसर्ग आया, अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी पर उपसर्ग आया, यह सब पूर्व के विपाक थें अहो! कर्मों ने तीर्थंकर को भी नहीं छोड़ा, तो अब तुम किसी की भलाई - बुराई के बारे में मत सोचनां एक ग्रामीण व्यक्ति बहुत लम्बा कपड़ा सिर पर बांधे हुये थां वह इतना लम्बा था कि नीचे तक लटरते चला जा रहा थां जमीन पर कपड़े को देखकर सेठजी बोले, भैया! क्यों फाड़ रहे हो, तनिक ऊपर कर लों वह कहने लगा - जिसने इतना बड़ा दिया है, फट जायेगा तो और दे देगां सेठजी शांत हो गयें तनिक आगे चले सो एक भैया मिलें जो पैर की जूतियाँ ऐसे दबाये थे जैसे बच्चे को दबाये हाँ सेठजी बोले-मैया, इन्हें पहन लो भूमि गरम हैं भैया बोले-सेठजी! आपका पुण्य है तो फिर खरीद लोगे, पर हम कहाँ से लायेंगे? हम तो तनक-तनक पहन लेते हैं और जब कोई गाँव / शहर आ जाता है, तो पहन लेते हैं इतने में वहाँ से राजा के कर्मचारी गरीबों को मदद देने हेतु निकल पड़ें उन्होंने फटे फेंटा वाले को देखा और नोट कर लिया कि इसकी व्यवस्था करना पड़ेगीं परंतु जूतियाँ लेनेवाले व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं लिखां
भो ज्ञानी आत्माओ! यह तो दृष्टान्त था जो अपने आप में स्वयं व्यवस्था किये बैठे हैं, कर्म भी कहता है कि ठीक है तुम इतने ही ठीक हों और जो अपनी जैसी व्यवस्था किये होता है उसकी वैसी व्यवस्था होती हैं अतः आप चिंता मत करो, कर्ता बनकर मत जिओ, लेकिन वस्तु व्यवस्था विधि है, संचालक है और जो संचालक है वही कर्म है, कर्म सिद्धांत कहता है कि घृणा किसी से मत करों जिससे आप घृणा कर रहे हो, वह भी कल भगवान् बन सकता है, यह ध्यान रखों गहरे पानी में बुलबुले कम आते हैं, उथले पानी में बुलबुले ज्यादा उठते हैं जिनके पास तनिक-सा पुण्य है और वर्तमान में दिखने लगा, तो फूल जाते हैं ऐसे उथले लोग खाली गगरी की तरह होते हैं, जो ज्यादा छलकती है, पर भरी गगरी नहीं छलकती 13वें गुणस्थान में केवली भगवान् तीर्थंकर से बड़ा पुण्य किसी का नहीं होता है ध्यान रखो, तुम्हारे पास थोड़ा-सा तो पुण्य है और इतने फूलते हो, अतः उतने ही नीचे गिर जाते हों
मनीषियो! ऐसे अल्प पुण्य के योग में निधत्ति व निकाचित-जैसे कर्म का बंध मत कर लेना, अन्यथा जिनके चरणों में किया है वे भी तुम्हें नहीं छुड़ा पायेंगें धवलाजी में लिखा है कि पंच- परमगुरु की भक्ति ऐसी होती है जो इन कर्मों में भी शिथिलता ला देती हैं एकमात्र उन्हीं पंच परमेष्ठी की भक्ति के अलावा और कोई दूसरा उपाय नहीं हैं इसलिये ऐसे पुण्य के योग में और ऐसी निर्मल पर्याय में उस पुण्य की वृद्धि तो
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