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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 235 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
अन्यलिंगे कृतम् पापम्, जिनलिंगे विनश्यति ! जिनलिंगे कृतम् पापम् वज्रलेपो भविष्यतिं अ. पा. टीकां
भो ज्ञानी आत्माओ ! क्लेश आदि कुछ भी परिणति आपने की, तो बंध होगा इसीलिये कर्म कहता है कि मेरा कोई दोष नहीं है; तेरे भावकर्म न हों, तो द्रव्यकर्म कभी नहीं होगां देखो, कांसे की थाली में सुइयाँ भरो और नीचे से घुमा दो चुम्बक को तो सुईयाँ अपने आप थाली में घूमने लगेंगीं लोग इसे चमत्कार कहेंगे कि क्या गजब की महिमा है ? भो चेतन ! आत्मा घूम रही है, आकाश में उड़ रही है, नीचे देखो पुण्य-कर्म की चुम्बक लगी है तो, भो ज्ञानी! यह मनुष्य - पर्याय आपको मिली है और जिस दिन नीचे की चुम्बक के शक्त्यांश अधिक बढ़ जायेंगें और ऊपर के शक्त्यांश कम रहेंगे तो नीचे टपक जाओगें इसका नाम नरक हैं जिस दिन ऊपर की चुम्बक के शक्त्यांश ज्यादा होंगे और नीचे की चुम्बक कम हो गई तो तुम ऊपर चले जाओगें अब बताओ, चुम्बक का क्या दोष? लेकिन चुम्बक कह रही हैं कि मैं तो घुमाती हूँ यदि आप में जरा भी लोहा होगा तो मैं खीचती रहूँगी और जिस दिन शुद्ध सोना बन जायेगा तब सोने पर चुम्बक नहीं चलेगीं ऐसे ही शुद्ध आत्मा पर कर्मों की चुम्बक नहीं चलतीं इसीलिये उदय को दोष नहीं देनां उदय काल में साम्य-परिणामों से नवीन कर्मों का बंध नहीं होगा और पुराने कर्म झड़ जायेंगें
भो ज्ञानियो ! अब पुनः समझनां यह उदाहरण मैं आपको कई बार दे चुका हूँ पंच परमगुरु का स्थान, देव-शास्त्र-गुरु का स्थान चूल्हा सदृश हैं विवेकी - ज्ञानी रोटी को चूल्हे में डालकर घुमाता जाता है और यदि रखी छोड़ दी तो जल जायेगी ऐसे ही पंच-परम-गुरु के चरणों में आप रोज आना, वंदना करना, प्रदक्षिणा देनां वहाँ आप बैठोगे तो राग की बातें शुरू करोगे और राग-द्वेष की बातें शुरू हुई कि जलना शुरू हुआ इसीलिये जब भी धर्मक्षेत्र में आओ तो भो ज्ञानी! जैसे चूल्हे में मां रोटी को घुमाती रहती है, ऐसे तुम घूमते रहना, लेकिन वहाँ अपना स्थाई भाव बनाकर मत बैठ जानां और जहाँ तुमने कर्त्ता - भाव बनाये, समझ लेना तुम्हारे ही भगवान तुम्हें अशुभ का बंध कराने लगेंगें क्योंकि राग परिणति है तो अशुभ का बंध, भक्ति-भाव है तो शुभ कि बंध अब चाहे तुम्हारा बेटा मुनि बन गया हो, चाहे पड़ोसी का बेटा, यदि भावलिंगी यति है और आपने उसके सामने कोई गड़बड़ काम किया तो ध्यान रखना, अशुभ का बंध नियम से होगां संयम वीतरागी अरहंतदेव का वेष है, यह मत सोचना कि यह तो हमारे घर के महाराज हैं, इस प्रकार यह जीव बंध तो हँस-हँस के करता है और जब कर्म का विपाक आता है तो आँखों से आँसू टपकते हैं, नाक से नाक बहती
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