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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 219 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "माँस फल-फूल नहीं, प्राणियों का कलेवर है"
न विना प्राणिविद्यातान्मांसस्योत्पत्तिरिष्यते यस्मात् मांसं भजतस्तस्मात् प्रसरत्यनिवारिता हिंसां 65
अन्वयार्थ : यस्मात् = क्योंकि प्राणिविद्यातात् बिना = प्राणियों के घात बिना मांसस्य उत्पत्तिः = मांस की उत्पत्तिं न इष्यते = नहीं मानी जातीं तस्मात् = इस कारणं मांसं भजतः = मांसभक्षी पुरुष के अनिवारिता हिंसा प्रसरति = अनिवार्य रूप से हिंसा फैलती हैं
यदपि किल भवति मांसं स्वयमेव मृतस्य महिषवृषभादेः तत्रापि भवति हिंसा तदाश्रितनिगोतनिर्मथनातं 66
अन्वयार्थ : यदपि किल = यद्यपि यह सच है कि स्वयमेव मृतस्य = अपने आपसे ही मरे हुएं महिषवृषभादेः = भैंस, बैलादिकों का मांसं भवति = मांस होता हैं तत्रापि = वहाँ भी, उस मांस के भक्षण सें तदाश्रित = उस मांस के आश्रित रहनेवाले निगोतनिर्मथनात् = उसी जाति के निगोद जीवों के मंथन सें हिंसा भवति = हिंसा होती
हैं
मनीषियो! भगवान् महावीर स्वामी की पावन तीर्थ देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचंद स्वामी ने पूर्वसूत्र में संकेत दिया कि अनादि-मिथ्यात्व के वशीभूत, मोह के मद में उन्मत्त जीव की ज्ञानज्योति जिस दिन जाग्रतमान होगी, उस दिन अविद्या, मिथ्यात्व और मोह का मद स्वयमेव विगलित हो जाएगां आचार्य भगवान् पूज्यपाद स्वामी ने कहा है कि
अविद्याभिदुरं ज्योतिः, परं ज्ञानमयं महत् तत्पष्टव्यं तदेष्टव्यं, तद्बटव्यं मुमुक्षुभिः इष्टो.49
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