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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 218 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 फर्श बहुत ठंडा रहता है, सो अलग से नई चप्पलें लाये हैं उन्हें धोकर रख ली हैं जब रसोई में जाते हैं तो पहन लेते हैं अरे! चौका को चौका रहने दो, घूरा मत बनाओं चप्पल पहनकर घूरे पर जाया जाता है, चौके में नहीं इसलिए विवेक का उपयोग करों पंचमकाल का अभी अन्त नहीं हुआ है, अभी तो मात्र ढाई हजार वर्ष हुए हैं अठारह हजार वर्ष तक चलना हैं अभी धर्म का विनाश मत कर देनां आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि जितने मादक द्रव्य हैं, मदिरा है और जितने चलित रस हैं, वह सब मदिरा हैं चाहे तुम्हारे अनार का रस क्यों न हो, यदि स्वाद बिगड़ चुका है तो जिनका मद्य का त्याग है, वे अलकोहल और बोतलों में भरी तरल औषधियों का उपयोग न करें जो आयुर्वेदिक है, सूखी है, वह ही शुद्ध हैं आयुर्वेद में भी जीवों की हड्डी-पसलियों का उपयोग होता हैं वहाँ भी पूछकर ही लेनां आयुर्वेद में ऐसी औषधियाँ हैं जिनमें मूत्र आदि का उपयोग होता है अथवा साक्षात् जीवों के कलेवर होते हैं पढ़ लेना, आयुर्वेद के नाम से शुद्ध मत कह देनां 'कल्याणकारक' जैन आयुर्वेद ग्रंथ हैं उसमें उग्रदत्ताचार्य महाराज ने सब रसायन, वनस्पति, औषधियों का कथन किया हैं दूध भी अगर फट जाये तो अभक्ष्य हैं भो ज्ञानियो! जिनको वर्षों तक रखा जाय, उसे भक्ष्य कैसे कहा जायेगा ? भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक नहीं, चैतन्य-प्रभु तुम्हें कहाँ मिलेंगे? देखो, अभी चाकलेट के बारे में क्या निकला था? आप पैसा भी दोगे, बिस्कुट, ब्रेड भी खिला रहे हों यदि ममता है तो बच्चे को अभक्ष्य मत खिलानां आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि जहाँ जीव उत्पन्न होते हैं, वह योनीस्थान हैं ऐसे मद का जो सेवन करता है, वहाँ नियम से अवश्य ही हिंसा होती हैं आगम तो यह कहता है कि तुम्हारे घर में कोई सामग्री बिगड़ जाये, तो उसे ऐसे स्थान पर फेंकना कि पशु भी न खायें भैया बाजार से ककड़ी लाये, उसमें कीड़ा दिख गया, तुमने उठाकर गाय के सामने डाल दिया, यानि आपने अपने हाथ से गाय को माँस खिलायां तुम्हारा कर्त्तव्य है कि तुम उसे ऐसे स्थान पर छोड़ो जहाँ कोई जीव उसे न खायें त्रैलोक्य-मण्डल हाथी को जाति-स्मरण हो गया, तो उसने खाना छोड़ दियां मुनिराज से पूछा, तो महाराज ने कहा-इसने पूर्व में मायाचारी की थीं ये मुनि का जीव हैं अब इसको जातिस्मरण हो गया है, अतः इसने अभक्ष्य खाना छोड़ दिया हैं उसको शुद्ध भोजन खिलाया जायें पुरुषार्थ की सिद्धि तभी होगी, अन्यथा नहीं, कितनी ही बातें कर लों जैसे मद्यपायी की अवस्था होती है, ऐसे ही कषायियों की अवस्था होती हैं दर्पण (सोलह सपने) Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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