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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 210 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 हिंसा त्यागने के उपायः 'श्रावकों के अष्ट-मूल-गुण' मद्यं मांसं क्षौद्रं पंचोदुम्बरफलानि यत्नेनं हिंसाव्युपरतिकामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव 61 अन्वयार्थ : हिंसाव्युपरतिकामैः = हिंसा का त्याग करने की कामना करनेवाले कों प्रथममेव यत्नेन =प्रथम ही यत्नपूर्वक मद्यं मांसं क्षौद्रं = शराब, माँस, शहदं और पंचोदुम्बरफलानि = पंच उदम्बर फल (ऊमर, कठूमर, बड़, पीपल, पाकर जाति के) मोक्तव्यानि = त्याग करना चाहिये मद्यं मोहयति मनो मोहितचित्तस्तु विस्मरति धर्मम् विस्मृतधर्माजीवो हिंसामविशंकमाचरतिं 62 अन्वयार्थ : मद्यं = शराबं मनो मोहयति = मन को मोहित करती हैं मोहितचित्तः = मोहितचित्त पुरुषं तु धर्मम् विस्मरति = तो धर्म को भूल जाता हैं विस्मृतधर्माजीवः = धर्म को भूला हुआ जीवं अविशंकम् = निडर होकरं हिंसाम् आचरति = हिंसा का आचरण करता है (अर्थात् बेधड़क हिंसा करने लगता है) भो मनीषियो! आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने बहुत सहज सूत्र दिया है कि 'आत्मा का धर्म अहिंसा है' अहिंसा का जहाँ से प्रादुर्भाव होता है, वहाँ से संपूर्ण धर्म अपने आप में शुरू हो जाते हैं और जहाँ हिंसा का प्रारंभ होना शुरू होता है, वहाँ सभी धर्म पलायन कर जाते हैं एक जीव व्रत, संयम, तप सबकुछ करता है, भगवान् जिनेन्द्रदेव की आराधना भी घंटों करता है, लेकिन यदि उसके कर्म हिंसात्मक हैं, तो सारी क्रियाएँ मिथ्या हैं जो जीव स्वाध्याय करता है, प्रवचन भी सुनता है, देव-पूजा भी करता है, लेकिन चर्या में षट्काय जीवों की हिंसा चल रही है अर्थात् बुद्धिपूर्वक जीवों का भी घात कर रहा हो तो, भो ज्ञानी! उस जीव की सारी की सारी क्रियायें दुग्ध में मिश्रित जहर की एक कणिका के तुल्य हैं, क्योंकि तुम्हारा धर्म अहिंसा हैं हिंसा के जो चार भेद हिंस्य, हिंसक, हिंसा और हिंसा का फल है, वे मात्र सुनने के लिये नहीं हैं भो ज्ञानी! Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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