________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 209 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
नयचक्र को सीखे बिना अभिमन्यु - जैसी हालत हो जायेगीं घुस गये तो निकल नहीं पाओगें जीव ग्रंथों में घुस तो जाता है, परंतु निर्ग्रथ नहीं बन पा रहा, क्योंकि हाथ में नयचक्र नहीं हैं ये बड़े-बड़े ज्ञानीजीव मुनि क्यों नहीं बनते? क्योंकि उन्होंने शब्द - तत्त्व को तो समझा है, परंतु आत्मतत्त्व को नहीं समझां यदि आत्मतत्त्व को समझ लिया होता, तो भो ज्ञानी! एक क्षण नहीं लगता और नयचक्र को लेकर यह जीव कर्म - शत्रु को नष्ट कर देतां
भो ज्ञानी आत्मा ! नियति नियत है, परन्तु नियत मिथ्यात्व को आगम स्वीकार नहीं करता हैं द्रव्य छह हैं, तत्त्व सात हैं, यह नियत हैं ऐसा सम्यक् नियत लगाकर पुरुषार्थ करोगे, तो कार्य सिद्ध होगा, ये भी नियत हैं बिना पुरुषार्थ के नियत कोई नियत नहीं हैं ध्यान रखना, जब तक निमित्त और पुरुषार्थ नहीं होगा, तब तक कोई वरदान काम नहीं आयेगां पुरुषार्थ को साथ लेकर चलना ही पड़ेगां पुरुषार्थ करोगे, तभी पुरुष यानि आत्मा की सिद्धि होगीं भो ज्ञानी! ऐसे नयचक्र को समझकर यदि वास्तव में आपको तत्त्व समझ में आया, तो उसको "तत्त्व-ज्ञान" कहना और जब भी वैराग्य के भाव आयें, तो वैरागी बन जानां
Du
श्री जैन मंदिर, गुडगाँव, हरियाणा
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com