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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 21 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
अर्थात एकही पदार्थ में बिना किसी विरोध के प्रमाण व नय के वाक्य से सत् आदि की कल्पना करना 'सप्तभङ्गी कही गई हैं आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने 'पंचास्तिकाय' ग्रंथ जी में सप्तभङ्गी का कथन कियाः
सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वतत्त्वं पुणो य तत्तिदयं
दव्वंखु सत्त भंगं आदेस वसेण संभवदिं 14
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अर्थात द्रव्य विवक्षावश सात भेदरूप होता हैं जैसे स्यात् अस्ति स्यात् नास्ति स्यात् उभय अर्थात् अस्ति नास्ति स्यात् अवक्तव्य स्यात् अस्ति अवक्तव्य स्यात् नास्ति अवक्तव्य, स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्यं एक ही द्रव्य में सात भंग कैसे घटित होंगे ? ऐसा प्रश्न होने पर समझना चाहिए कि मुख्य एवं गौण अपेक्षा से सातों भंग घटित हो जाते हैं जैसे-एक राम पिता भी हैं, पुत्र भी हैं, भाई भी हैं, पति भी हैं, यहाँ राम एक हैं, परंतु संबंधों की अपेक्षा से अनेक रूप भी हैं इस प्रकार सापेक्षता से अनेकांत - स्याद्वाद को कहा हैं विशेष के लिए न्यायशास्त्रों का अध्ययन करना अनिवार्य हैं आचार्य महाराज ने विरोधनाशक - शैली का कथन किया, उसे ही स्वीकारों
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अलवर (राजस्थान) स्थित अहिंसा स्थल
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