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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 20 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
जिसने पीठ पकड़ी, उसे चबूतरे-जैसा हाथी लग रहा थां पूँछ को स्पर्श करने वाले की दृष्टि में हाथी रस्सी जैसा थां सूंड को ग्रहण करने वाले की दृष्टि में मूसल जैसा थां एक-एक अंग को पकड़कर सातों जन्माँध परस्पर विसंवाद करने लगे तथा कहने लगे कि जो मैंने देखा वही सही हैं
भो ज्ञानी! विसंवाद देखकर नेत्र- सहित विद्वान् मधुरवाणी में पृच्छना करता है- अहो! भोले प्राणियो! आप किस कारण से परस्पर में मैत्रीभाव का अभाव कर विसंवाद कर रहे हो? विद्वान् की बात सुनकर सातों ही मुखर हो गये, सभी अपने स्पर्शनजन्य ज्ञान के अनुभव से कहने लगे कि मैंने अपने हाथों से हाथी को स्पर्श करके देखा हैं तभी ज्ञानीपुरुष ने विवेक से युक्तिपूर्वक विचार किया-यदि इनको सीधा समझाते हैं तो इनकी समझ में आनेवाला नहीं है, अतः इनको इनकी भाषा में ही समझाया जाएं वह कहता है-बंधुओ! आप सभी शांत होकर मेरी बात सुनों जितने प्रकार से आप लोगों ने हाथी माना है, उतने प्रकार का हाथी नहीं है, परंतु उन सभी से रहित भी हाथी नहीं हैं इस प्रकार सभी जन्मांधों का विसंवाद समाप्त हो गयां अहो! आश्चर्य है कि जन्मांध शांत हो गये, परंतु मोहान्धों का विसंवाद दूर नहीं हो रहां तत्त्व को समीचीन जानकर भी वस्तु के पर्याय-स्वरूप को समझना नहीं चाहतें अरे भाई! जैनशासन के स्याद्वाद, अनेकांतरूप अरहंत-दर्शन में एकांत दृष्टि वाले हठी धर्मात्माओं को स्थान ही कहाँ? यहाँ तो सम्पूर्ण विरोध को दूर करनेवाली अपूर्व स्याद्वाद शैली हैं यदि व्यक्ति प्रत्येक पदार्थ को अनेकांत धर्म से देखना प्रारंभ कर दे, तो कोई विसंवाद ही न रहें
भो ज्ञानी! एकांकी विचारधारा सम्पूर्ण विसंवादों की हेतु हैं सम्यग्ज्ञानी, स्याद्वाद-विद्या के प्रभाव से यथावत् वस्तु का निर्णय कर भिन्न-भिन्न कल्पनाओं को दूर कर देता हैं सांख्य-दर्शन वस्तु को केवल नित्य तथा बौद्धदर्शन क्षणिक मानता है, परंतु स्याद्वादी कहता है कि यदि सर्वथा नित्य है तो अनेक अवस्थाओं का परिणमन किस प्रकार होता है ? और यदि सर्वथा क्षणिक है, तो 'यह वही वस्तु है जो कि मैंने पूर्व में देखी थी' इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान क्यों होता है ? पदार्थ द्रव्य –अपेक्षा नित्य और पर्याय –अपेक्षा क्षणिक ही हैं स्याद्वाद से सर्वांग वस्तु का निश्चय होने से, एकांत श्रद्धान का निषेध होता हैं अतः, सर्वप्रथम हमें यह समझना चाहिए कि स्याद्वाद का अर्थ क्या है ? स्यात् = कथंचित्, नय अपेक्षा से वाद = वस्तु का स्वभाव, कथनशैली अर्थात् अपेक्षाकृत कथन करने की पद्धति का नाम ही स्याद्वाद -शैली हैं
एकस्मिन्नविरोधेन
प्रमाणनयवाक्यतः सदादि कल्पना या च सप्तङ्गीति च सा मतां पंचा. गाथा टीका-14
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