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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 145 of 583 सकतीं त्रस नाली के बाहर आपको यदि निगोद अवस्था पसंद है, तो जाओं इसलिए यदि जाना ही है तो सिद्धालय जाओं
भो ज्ञानी! कभी-कभी सबको मार्ग बतानेवाले भी मार्ग भटक जाते हैं, यही कर्म की विचित्रता है इसमें आश्चर्य मत करनां देखो, संध्या - बेला में भूखे-प्यासे राजा को एक वृद्ध ने अपनी झोपड़ी में स्थान देकर एक गिलास पानी और एक फल दे दियां प्रातंकाल राजा चला जाता है, पर परिचय नहीं दियां महापुरुष अपना परिचय देते भी कब हैं ? दूसरे दिन उस वृद्ध के यहाँ संदेश आ गया कि आपको राजा ने सभा में बुलाया हैं वह घबरा गया, थर-थर काँप रहा था राजा ने कहा- "आपने मेरे प्राणों की रक्षा की एक गिलास पानी पिलाया, आपने बहुत बड़ा उपकार किया था अतः आपको राजभवन में आवास दिया गयां "कालांतर में दादाजी के भाव बदल गयें सम्राट के एकलौते पुत्र को लुभाकर घर ले गया और जितने भी वस्त्र आभूषण थे, सब उतार लिएं बेटे को भी छिपा दियां हलचल मच गयी, राजकुमार कहाँ गया? खोजी - दलों ने तो खोज ही लियां जब राजा के समाने उस व्यक्ति को खड़ा किया गया तो राजा कहता है- " यद्यपि यह व्यक्ति दण्ड का अधिकारी तो बहुत ज्यादा है, लेकिन मैं इसे मारूँगा नहीं, क्योंकि इसने एक बार मुझ पर उपकार किया था " अहो! एक गिलास पानी पिलानेवाले का इतना आदर रखा गया हैं अरे! जिस माँ ने तुम्हें पानी नहीं, आँचल का दूध पिलाया हो, उस माँ का तू कितना उपकार मान रहा है? उन माँ-पिता को तूने अलग कर दियां एक अक्षर देनेवाला गुरु, जिसने जिनवाणी का सार तुझे दिया और वह गुरु को भूल जाए, तो उससे बड़ा पापी कोई इस दुनियाँ में है ही नहीं इसलिए कंगूरों को मत निहारते रहना, नींव की ईंट को देखना
भो ज्ञानी! ज्ञान यही कहता है कि किसी जीव के उपकार को मत भूल जाना अन्यथा तुम्हारा ज्ञान, अज्ञान हैं अतः, ज्ञानी तो बनें, पर ज्ञान का भी लोभ न करें भो ज्ञानी! जैसे धन के लोभी की समाधि नहीं होती है, ऐसे ही ज्ञान के लोभी की भी निर्मल समाधि नहीं होतीं ज्ञान का लोभी काल या अकाल नहीं देखता, कि सामायिक का समय है या प्रतिक्रमण का, वह तो पुस्तक का कीड़ा बना रहता हैं अरे! अकाल में स्वाध्याय करने से तीव्र कर्म का आस्रव होता हैं भो ज्ञानी! यदि कालाचार का ध्यान नहीं रखा तो अंतिम समय में भाव बिगड़ जाते हैं, रोगी होकर कुसमाधि को प्राप्त होते हैं तुम्हारी पात्रता नहीं है, रात में बारह बजे षटखण्डागम खोलकर बैठे हों धवला जी में स्पष्ट लिखा है कि आप सामान्य गृहस्थों के बीच में वाचना कर रहे हो तो असंयम उत्पन्न होता है, संयम का नाश होता है, कलह होती हैं पूर्णमासी को अध्ययन करें तो क्लेष होता हैं। चतुर्दशी को अध्ययन करो तो रोग बढ़ते हैं अमावस्या को अध्ययन करे तो परस्पर में विरह हो जाता हैं अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णमासी में सिद्धांत - ग्रंथों के लिए अनाध्य - काल हैं पूड़ी, पापड़, चूड़ा ऐसे-ऐसे गरिष्ट भोजन करके आया है और सिद्धांत-ग्रंथों का अध्ययन कर रहा हैं आपको मालूम होगा कि गोमटेश बाहुबली भगवान जिस पर्वत पर विराजमान हैं उस पर्वत की श्रेणी पर आचार्य भगवान् नेमीचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती
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