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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 146 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 ग्रंथराज षट्खंडागम का स्वाध्याय कर रहे थे वहाँ चामुण्डराय पहुँचते हैं, तो आचार्य महाराज ने स्वाध्याय बंद कर दियां मंत्री चामुण्डराय अपना अपमान समझकर निवेदन करता है, प्रभु! मेरे आते ही आपने ग्रंथ क्यों बंद कर लिया ? मंत्रीवर! मैं क्या करूँ? लोक को देखू या आगम की व्यवस्था देखू? लोक की अपेक्षा आगम पूज्य हैं लोक मेरा कल्याण नहीं करेगा, आगम मेरा कल्याण करेगां आगम में लोगों के समक्ष इस ग्रंथ के अध्ययन करने की आज्ञा नहीं है, इसलिए मैंने इसको बंद कर लिया हैं चामुण्डराय ने जिज्ञासा प्रगट की, हे प्रभु! यदि यह ग्रंथ ऐसे ही बंद रहेंगे तो हम लोगों को ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? उस समय भगवान् नेमिचंद्र स्वामी ने करुणा करके कहा- चामुण्डराय! चिंता मत करो, हम तुम्हें ग्रंथ देंगें अतः उन्होंने कर्मकाण्ड और जीवकांड ग्रंथ का सृजन चामुण्डराय की प्रार्थना पर कियां भो ज्ञानी! चारपाई पर बैठे-बैठे तुम जिनवाणी पढ़ रहे हो, जिस पलंग पर तुम सोए थे, जिन वस्त्रों में तुम सोये थे, ऐसे वस्त्रों में तुम जिनवाणी का स्वाध्याय कर रहे हों खड़े-खड़े लघुशंका कर रहे थे, पेंट पहिनकर जिनवाणी उठा लाएं भो ज्ञानी! अब बताओ शुद्धि कितनी बची? जबकि 'मूलाचार' में लिखा है कि धर्मायतनों से पच्चीस हाथ दूर लघुशंका का स्थान होना चाहिए तथा पचास हाथ या सौ हाथ दूर मल-स्थान होना चाहिएं मार्ग तो यही है कि देव-शास्त्र-गुरु को स्पर्श करने के लिए शुद्ध होकर आना चाहिएं इतना नहीं कर पाओ तो कम-से-कम शौच और लघुशंका के वस्त्रों में शास्त्रों को नहीं छूनां अब बताओ, ठण्डी के मौसम में ऊन के वस्त्र पहनकर, गद्दे पर बैठकर, कोट पहनकर, बढ़िया स्वाध्याय कर रहे हों अहो! तुम्हारा कोट कब धुलकर आया था? आगम परम्परा के अनुसार विद्वान दुपट्टा-टोपी लगाकर जिनवाणी पढ़ता है, यह स्कूल, कालेज का अध्ययन नहीं चल रहां मुख में पान दबाए हुए तुम उपन्यास पढ़ रहे हो या जिनवाणी? यह वीतरागवाणी की अवहेलना हैं यदि स्वाध्याय की ललक है तो घर में चौकी-चटाई की व्यवस्था कर लेना पर उस चटाई पर मत बैठना, जिस पर तुम सोए हों मनीषियो! यह गलीचों का शासन नहीं, यह संस्तर का शासन हैं भो ज्ञानी! आचार्य महाराज कह रहे हैं- सम्यज्ञान के तीन दोष हैं क्या मालूम सात तत्त्व सही हैं या गलत? वीतरागमार्ग सत्य है कि सरागियों का मार्ग भी सत्य है? संशय में झूल रहा है और विपर्यय में सरागी को ही सतगुरु स्वीकार लियां विपरीत परिणमन ही विपर्यय-भाव हैं सीप है या चांदी, जब तक ऐसा भाव है तब तक संशय है, परंतु विपर्यय में तो सीप को ही चांदी मान लियां निर्णय से रहित ज्ञान, यह अनध्यवसाय-दोष हैं __ मनीषियो! सम्यज्ञान वह होता है जिसमें संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय यह तीनों दोष नहीं होतें सम्यज्ञानी जीव सम्यज्ञान की आराधना आठ अंगों सहित करता है, ताकि हमारी आत्मा मिथ्यात्व से ग्रसित न हों मिथ्यात्व की आराधना कभी उपकारी नहीं मानी जाती उपकार तो माना जा सकता है, पर मिथ्यात्व को Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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