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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 140 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
अतः, ज्ञान को ज्ञानदृष्टि से समझना, अज्ञानदृष्टि से मत समझनां यदि ज्ञान समझ में आ गया, तो सचमुच ज्ञानी बन जाओगें
भो ज्ञानी! ज्ञान ‘पदार्थ नहीं है, ज्ञान 'प्रकाश' नहीं हैं यदि प्रकाश से ज्ञान होता, तो चमगादड़-उल्लू को ज्ञान कैसे हो जाता है ? अहो! ज्ञान पदार्थ-का-धर्म नहीं, ज्ञान प्रकाश का धर्म नहीं, ज्ञान आत्मा का धर्म हैं ज्ञान कोई पदार्थ नहीं, पदार्थ तो ज्ञान में झलकते हैं, फिर भी पदार्थ ज्ञानरूप नहीं होता है और ज्ञान कभी पदार्थरूप भी नहीं होता हैं जब-जब मेरे सामने जो-जो पदार्थ आएगा, उस समय मुझे वैसा दिखेगां यह आत्मा की विशुद्धि का प्रभाव है कि दर्पण में पदार्थ जैसा प्रतिबिम्ब झलकता है पदार्थ वैसा ही ज्ञान में ज्ञेयरूप झलक रहा है, लेकिन पदार्थ नहीं हैं इसलिये ध्यान रखना, दूध मीठा भी नहीं होता है, दूध कड़वा भी नहीं होता हैं दुग्ध का धर्म माधुर्य होता हैं लेकिन पर-की-उपाधि लगा दी जाये, मिश्री डाल दी जाये, तो मीठा हो गया और कड़वी तुमड़ी में रखा जाये तो कड़वा हो गयां इसी प्रकार ज्ञान तो ज्ञान ही हैं जैसे रेलवे सिगनल में कभी लाल प्रकाश है तो कभी हरा, कभी पीला, किन्तु इस प्रकाश पर काँच का आवरण हैं नीला, पीला, हरा रंग काँच के वर्ण के कारण दिखता हैं, प्रकाश तो जैसा है, वैसा ही हैं ऐसे ही, ज्ञान तो आत्मा का वस्तुधर्म हैं वही ज्ञान तुझे सिद्ध बना देता है और वही ज्ञान तुझे निगोद ले जाता हैं
भो ज्ञानी! उपाधि के कारण ज्ञान भी बदनाम हो जाता हैं जैसे आप बहुत सज्जन-पुरुष हो, लेकिन आपकी संतान ने कोई गलत काम कर दिया, तो आप सोचते हो- बेटा! तूने तो मेरी नाक काट दी लेकिन कुछ नहीं हुआ है, तुमने 'पर' को अपना स्वीकार लियां इसलिये ध्यान रखो, जितने जुड़कर रहोगे, उतने बदनाम होगें यदि हटकर रहोगे, तो तुम शुद्ध रहोगे, निर्मल रहोगे, विशुद्ध रहोगें जहाँ कर्त्तव्य-भाव है, वहीं बदनाम-भाव हैं जिसे लोक में लोग अग्नि-देवता कहते हैं, उसे भी लुहार के घन से पिटना पड़ता है, क्योंकि कुधातु का संयोग किया हैं भो मनीषियो! तुम्हें भी बदनामी सहन करना पड़ती है, क्योंकि तुमने पुद्गल का संयोग किया हैं योगेन्दुदेव स्वामी ने 'परमात्म प्रकाश' में लिखा है कि घन की मार झेल रहा है वह अग्निदेवता, क्योंकि कुधातु का सेवन कियां अहो! ज्ञानानुभूति से युक्त मेरे आत्मदेव! तुझे बदनाम होना पड़ रहा है, क्योंकि तूने अनादिकाल से मिथ्यात्व का सेवन किया हैं इसलिये अपने ज्ञान का सम्यक उपयोग क्यों नहीं कर लेता? अपनी ज्ञान की धारा को मिथ्यात्व में नहीं ले जानां
भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि ज्ञान के क्षेत्र में संतुष्ट नहीं होना, संयम के क्षेत्र में संतुष्ट नहीं होनां संतुष्ट तो कषाय में हो जाना कि बहुत हो गई, पर ज्ञान के लिये हर समय बालक बनकर जीना और संयम के लिये हर समय बूढ़े बन जाना, पता नहीं कब मृत्यु हो जायें इसलिये उस ज्ञान का प्रयोग ज्ञानी बनकर ही करना, क्योंकि जब तक धैर्य, सत्य और संयम का बांध बना है, तब तक ज्ञान के नीर से चारित्र की फसल लहराती रहेगी जिस दिन बांध टूट गया, उस दिन वही ज्ञान तेरी फसल को उजाड़ देगां
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