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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 139 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो चेतन! मिथ्या-ज्ञान की महिमा को देखो'; एक नहीं, दो नहीं, तीन सौ, तिरेसठ, मत चल गयें अतः, ज्ञान सम्यक नहीं, ज्ञान मिथ्या नहीं; दृष्टि निर्मल करके चलनां दीप हाथ में लेकर देखने के लिये चलते हो कि कहीं गड्ढे में न गिर जाओ, कहीं किसी जीव पर पैर न पड़ जाये; परन्तु दीप लेकर भी जो मल में गिर रहा हो उसके लिये दीप क्या करेगा ? भगवान् आत्माओ! माँ जिनवाणी के अखण्ड दीप को लेकर तुम चल रहे हो और असंयम के मल पर गिर रहे हो तो तुम्हारा ज्ञान किस काम का है ? 'भगवती आराधना' में आचार्य शिवकोटी महाराज ने लिखा है- दीप का उद्देश्य कुएँ से बचना मात्र होता हैं अहो! मैं असंयम से अपनी रक्षा नहीं कर पाया, कर्म-लुटेरों से अपनी रक्षा नहीं कर पायां इसलिये एक दीप और जला लेना, परन्तु वह दीप तो चैतन्य के घृत का, चैतन्य की ज्योति में और चैतन्य से ही जलेगां आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने 'समयसार' की 'आत्मख्याति' टीका में लिखा हैं नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासतें चित्स्वभावाय भावाय सर्व भवान्तरच्छिउँ उस चैतन्य-ज्योति को नमस्कार हो, जिसमें स्वानुभूति की ज्योति जल रही हैं कर चलो, वह समयसार स्वानुभूतिस्वरूप अखण्डज्योति मेरी आत्मा हैं अतः, देख-देखकर चलो, हार-निहारकर चलो, कहीं कषाय का काँटा न लग जायें यदि काँटा लग जायेगा, तो षाय का काँटा निकालने कोई अस्पताल नहीं हैं एकमात्र जिनशासन, अहंत-वाणी, निग्रंथ गुरु के आलंबन के अलावा इस विश्व में कषाय के काँटे को निकालनेवाला कोई नहीं हैं ध्यान रखना, कषाय का काँटा निकलेगा भी तभी, जब आत्मस्वरूप होकर समझेगा, उसके प्रसन्न हुए बिना वह निकलनेवाला भी नहीं हैं भो ज्ञानी! जिनवाणी में कहीं नहीं लिखा कि अध्ययन का नाम ज्ञान हैं अध्ययन का नाम ज्ञान होता, तो निगोदिया को ज्ञानी कैसे कहते ? यदि शास्त्रों में ज्ञान है, तो अलमारियाँ ज्ञानी हो जाना चाहियें शास्त्र यदि ज्ञान हो जाएँगे तो, हे जैनियो! आपको फिर जैन नहीं कह पायेंगें पदार्थ और प्रकाश ज्ञान नहीं हैं जो ज्ञान से जाने जाते हैं, यह तो ज्ञेय हैं पदार्थ से ज्ञान होता, तो ध्यान रखना, यहाँ घट नहीं है, पर घट को आप जान रहे हैं परन्तु ज्ञान के बिना घट के अभाव में घट को नहीं जान पाओगें ध्यान रखना, जिस व्यक्ति ने अपने दादा के दादा को नहीं देखा, यदि वह कहे कि मेरे दादा का दादा कोई है ही नहीं, तो अनास्था आ जायेगी, क्योंकि सम्यक ज्ञान का प्रकरण है और ज्ञान में तो तर्क लगते ही हैं ज्ञान का नाम ही तर्क-बुद्धि हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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