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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 129 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 वात्सल्य की रोटी नहीं होतीं वात्सल्य से परिपूर्ण घर में चूल्हा एक होता है और आदमी चार होते हैं इसी प्रकार तुम्हारे पास सम्पत्ति है और सन्मति नहीं है तो तुम श्रीमति को भी नहीं सँभाल पाओगें धन्य हो उन सन्मति वर्द्धमान को, जिनके सामने सिंह और गाय एक ही घाट पर पानी पीते थे और आज तुम एक मंच पर भी नहीं बैठ पाते हों भो ज्ञानी! मच्छर तो खून पीता है, परन्तु जो परस्पर वात्सल्य भाव नष्ट कराता है, समझ लेना वह मानव के रूप में बड़ा मच्छर है, जो कि वात्सल्य के रक्त को चूस रहा हैं तीर्थंकर के शरीर में रक्त का रंग दूध के समान होता हैं अहो! जैसे ही कोई बालक माँ के गर्भ में आता है तो माँ के आंचल में दूध भर जाता हैं जिसका एक के प्रति वात्सल्य है और जिनका प्राणी मात्र के प्रति वात्सल्य भाव हो, तो उसके सर्वांग में दूध भर जाता हैं भो ज्ञानी! वात्सल्य के धर्म से भरा हृदय चेहरे से समझ में आ जाता है, जिन जीवों के अंदर वात्सल्य-भाव नहीं होता, उनके चेहरे में लालिमा दिखेगी और जिनके चेहरे पर अंतरंग में वात्सल्य होता है उनके चेहरे में आपको सफेदी नजर आयेगी क्योंकि जिनके हृदय में करुणा, प्रेम, दया एवं अनुराग होता है, उनके शरीर में श्वेतकणों की वृद्धि होती हैं जिनके हृदय में करुणा-भाव नहीं, टेंशन हो रहा हो, सिरदर्द हो रहा हो, वहाँ वात्सल्य भाव कहाँ? घरों में झगड़ा क्यों होता है? अरे सास! आप भी तो बहू बनकर आई थीं अब सास बन गई हो तो जैसा व्यवहार अपनी बेटी के साथ करती हो, बहू भी तो किसी की बेटी हैं आप भी उसे बेटी मान लो, वह आपको माँ कहने लगेगी और फिर देखो घर की क्या व्यवस्था बनती है? अरे! परिवार चलाना चाहते हो तो बहू और बेटी का भेद समाप्त कर दों भो ज्ञानी! आज धर्मात्मा से धर्मात्मा नहीं मिल रहा हैं मेरा प्रश्न है आपसे, वे रोटियाँ किसकी खा रहे हैं? पानी किसका पी रहे हैं? पिता ने चौका लगाया, बगल में बेटे ने भी चौका लगा लिया, दोनों अपने आवास पर खड़े हैं उन दोनों के भाव देखो, कि हमारे यहाँ आ जाते, इनके यहाँ क्यों चले गये और मन में कहीं भावना आई कि चलो पिताजी के यहाँ आहार दे आवें तो पिताजी घूर घूर कर देखते हैं; बेटा भी घूर-चूर कर देखता है और आहार भी दे रहा हैं ऐसी वर्गणायें जब भोजन में मिल जाती हैं, तो धर्मात्मा भी कहते हैं कि हम भी आपस में नहीं मिलेंगें ध्यान रखना, आगम में कितनी विधियाँ लिखी हैं? मन- शुद्धि, वचन-शुद्धि, काय-शुद्धिं परिणाम तुम्हारे निर्मल नहीं हों तो ग्रास देना तो दूर की बात, तुम पैर भी मत छू लेना, पैर मत दबा देना; क्योंकि आपके शरीर की कलुषित वर्गणाएँ उनके शरीर में प्रवेश होंगी यदि आपके परिणाम कुलषित हो रहे हैं तो कोई दूसरे के घर में आहार देने भी मत जानां 'रयणसार' ग्रंथ में लिखा है कि गर्भवती माँ एक-एक कदम सँभाल कर चलती है और भोजन भी संभलकर करती है कि मेरे उदरस्थ शिशु को कोई पीड़ा न हो जायें आचार्य कुंदकुंद देव कह रहे हैं-हे श्रावको! तुम उदरस्थ शिशु की माँ के तुल्य हो Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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