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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 128 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 'आत्म-प्रभावना ही प्रभावना है' आत्मा प्रभावनीयो रत्नत्रयतेजसा सततमेवं दानतपोजिनपूजाविद्यातिशयैश्च जिनधर्म:30 अन्वयार्थ : सततम् एव = निरंतर ही रत्नत्रय तेजसा = रत्नत्रय के तेज सें आत्मा = अपने आत्मा को च = औरं दानतपोजिनपूजा विद्यातिशयैः = दान, तप, जिनपूजन और विद्या के अतिशय से अर्थात् इनकी वृद्धि करके जिनधर्मः = जिनधर्म को प्रभावनीयो = प्रभावनायुक्त करना चाहिएं मनीषियो! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी के माध्यम से हम महागंगा का पान कर रहे हैं उन्होंने हमें सूत्र दिया है कि जीवन में सब कुछ खो जाता है, फिर भी सब कुछ मिल सकता हैं जहाँ तेरा कोई नहीं होता, वहाँ तेरे सब कुछ होते हैं, लेकिन सखे सरोवर में कभी हंस नहीं बैठते. सखे वक्ष पर कोई पक्षी आकर नहीं करतें जिसके हृदय-सरोवर का वात्सल्य-नीर सूख गया है, उसके पास धर्म-रूपी हंसों का वास नहीं हो पातां धर्म वहीं है, जहाँ वात्सल्य भाव है! धर्म वहीं है, जहाँ धर्मात्मा-रूपी अनुराग हैं जिसके अन्तरंग में अनुराग नहीं, वात्सल्य भाव नहीं, वहाँ धर्म नहीं हैं मनीषियो! धन-वैभव पुण्य का फल है, ये विभूतियाँ ऊपरी चमक हैं, परंतु आत्मा के भोजन का यदि कोई द्रव्य है तो वात्सल्य और ज्ञान-आराधना हैं भो ज्ञानी! आपकी पहचान अतिथि के आतिथ्य से होती हैं अपने घर में आप कितने ही अच्छे से रहते हो, लेकिन अतिथि तुम्हारे व्यवहार का सही-सही प्रचार करेगां एलाचार्य महाराज 'करलकाव्य' में लिखते हैं-जिस घर, समाज एवं देश में अतिथि सत्कार नहीं है, वह टेसू/ किंसुक के पुष्प के समान है, जिसमें सुन्दरता तो बहुत होती है, लेकिन भौंरे कभी नहीं मँडरातें पर जिसके अंतरंग में वात्सल्य का पराग है, सुगंध है, वहाँ तत्त्वज्ञानी धर्मात्मा, साधु-संत रूपी भौंरे अपने आप आते हैं यह सुगंध का प्रभाव हैं अतः, मोक्षमार्ग सुन्दरता का नहीं, स्वभाव का हैं जिसका स्वभाव सुवासित होता है, उसके बगल में शेर भी बैठ जाता है, नाग भी आकर बैठ जाता है और नेवला भी बैठ जाता है; परन्तु जिसका स्वभाव कड़क है, कड़वा है एवं परिणामों में कलुषता भरी होती है उसे देखकर, आप तो मनुष्य हो, तिथंच भी मुँह फेर लेते हैं भो ज्ञानी! वात्सल्य की आँखों को देखकर श्वान भी पूँछ हिलाने लगता है और क्रूर आँखों को देख कर वह भी भाग जाता हैं घर में वात्सल्य होगा तो एक रोटी के चार भाग भी हो सकते हैं, और वात्सल्य नहीं है तो चार रोटी का एक भाग नहीं हो सकतां जिसके घर में चार चूल्हे होते हैं समझ लो उसके घर में Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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