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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 125 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
धर्म को निहारता हैं अहो धर्मात्माओ! धर्म एहसान नहीं है, धर्म तेरा स्वभाव हैं धर्म को एहसान मानने लग जाओगे तो धर्मावलंबियों से तुम सम्मान की भावना रखोगे कि मैंने आपके धर्म को चलाया है, मैंने आपके धर्म को प्रभावित किया हैं
__ भो ज्ञानी! अरे! अपने आप का कल्याण करने के लिए धर्म स्वीकार किया जाता है न कि धर्म का कल्याण करने के लिए हे वर्धमान! आपने जिनशासन को महान नहीं बनायां दुनियाँ कुछ भी कहे, लेकिन वर्धमान से पूँछोगे तो कह देंगे कि हमने नमोस्तु-शासन को महान नहीं बनाया, अपितु नमोस्तु-शासन को स्वीकार कर लिया, तो हम भगवान् बन गयें
__ अहो! श्रमण संस्कृति का जो आश्रय लेते हैं, वह भगवान् बन जाते हैं यहाँ विवक्षा समझना, व्यक्ति पर जोर देंगे तो जिनशासन महावीर से अथवा आदिनाथ से प्रारंभ हो जाएगा, जबकि जिनशासन सनातनशासन हैं तीर्थकर जिनशासन के प्रवर्तक नहीं, प्रचारक होते हैं उन्होंने अनुकंपा और वात्सल्यभाव से प्राणीमात्र को वीतराग-धर्म की देशना दी है और स्वयं में स्थिर होकर स्थितिकरण किया हैं
मनीषियो! होलिका के दहन करने के पहले थोड़ा अंदर में झाँक लेना अथवा दशहरा मैदान जाने से पहले स्वयं के रावण से मिल लेनां प्रहलाद होलिका का पुत्र नहीं, भाई का बेटा थां उसको लेकर पहुँच गई थी जलने के लिये, पर जला नहीं सकीं लेकिन आज तक होलिका को जलाया जा रहा हैं एक बेटे को जलानेवाले के लिए हमारी संस्कृति ने सहन नहीं किया, आज तक उसको जलाते आ रही हैं परंतु ध्यान रखना, जो अपनी बेटी के टुकड़े-टुकड़े पेट में ही कर रही है, उनकी होलियाँ कितनी जलेंगी ? इसलिए पहले अपने हृदय से पूछ लेना कि मैं कितना पवित्र हूँ? और संकल्पी-हिंसा मत करनां यह स्थितिकरण की बात कर रहा हूँ चाहे एक दिन का गर्भपात हो या नौ महीने का हों जिनशासन कहता है कि पंच-इन्द्रिय जीव का ही घात किया हैं
भो ज्ञानी आत्माओ ! आचार्य विरागसागर, आचार्य विद्यासागर की माँ सोच लेती कि कौन पालन करेगा? तो आज बुंदेलखंड और सारे देश में श्रमणों की जो भीड़ दिख रही है, उसे दिखाने कौन आता ? घर में खाने को न हो तो उसके पुण्य पर छोड़ देना, लेकिन एक भावी भगवान् के टुकड़े करने के विचार मन में नहीं लाना, यदि स्थितिकरण समझ रहे हो तो भो चेतन! स्थितिकरण तेरे अंदर का विषय हैं जब रावण को जलाने दशहरा मैदान में जाओ, तो अपने मन से पूछ लेना कि तूने कितनी सुन्दरियों को निहारा है ? किसमें ताकत है रावण में आग लगाने की ? यदि रावण होता तो एक बात आपसे कहता कि हे मानवो! मैं अग्नि में जलने से भयभीत नहीं हूँ, मुझे आप जला दो; लेकिन इतनी कृपा करना कि उन पवित्र हाथों से अग्नि लगवाना, जिसने कभी पर-नारी पर दृष्टिपात न किया हों मन में भी न किया हो, वचन से भी न किया हो और शरीर से भी न किया हों ऐसे पवित्र पुत्र जो हों, तो मेरी यष्टि (देह) पर अग्नि लगवा देनां यदि
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