SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 124 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जरूर कहा था अहो! बलभद्र आ गये, रुद्र आ गये, ब्रह्मा आ गये, विष्णु आ गये तो तीर्थकर आ गये नमस्कार नहीं किया और क्षुल्लक आ गये तो नमस्कार कर लिया; क्योंकि उसे मालमू था कि जिनेन्द्र की वाणी में लिखा है कि पंचमकाल में क्षुल्लक तो होते हैं, परंतु तीर्थंकर नहीं होतें तीर्थकर चौबीस तो हो चुके, यह पच्चीसवें भगवान् कहाँ से आ गयें अतः, रेवतीरानी ने नमस्कार नहीं किया, क्योंकि दृढ़ श्रद्धा थीं भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् समंतभद्र-जैसी दृढ़ श्रद्धा, दृढ़ वात्सल्यता और दृढ़ स्थितिकरण किसी के पास नहीं थां वे कहते हैं-परमेश्वर वह होता है जो अविसंवादी होता है और जिसका कोई विरोध नहीं होता हे नाथ! जब मैंने आँख उठाकर देखा तो संपूर्ण ब्रह्मांड में मुझे कोई निर्दोष नहीं दिखा, निर्दोषपना तो आप में ही झलकां हे प्रभु! प्रत्यक्ष-परोक्ष से, अनुमान आदि से जब निहारा, तो भी आप निर्दोष झलकें इसीलिए समंतभद्र आपके चरणों में शीश झुकाता हैं यहाँ किसे नमस्कार किया ? महावीर को नहीं, क्योंकि मुमुक्षु जीव नामों को नमस्कार नहीं करता है, वह भगवान को नमस्कार करता हैं अज्ञानी जीव नामों में रोते हैं, विसंवाद करते हैं और ज्ञानी जीव गुणों को देखकर नतमस्तक हो जाते हैं, "वंदे तद्गुण लब्धये" । भो ज्ञानी! दूध से भरा गिलास रखा था, छोटे से पोते ने आकर धक्का दे दियां दूध का गिलास गिर गयां यहाँ सँभालो अपने आप को फैलनेवाला तो फैल ही गया, अब पुनः दूध तो आने वाला नहीं है, पर पूत को क्यों पीटा ? पीटने से दूध भरनेवाला नहीं हैं परंतु अज्ञानी दूध को भी फैला बैठा है और पूत को भी पीट सकता हैं माँ जिनवाणी कह रही है कि जीवन जीने की शैली सीखना है तो जिनेन्द्रदेव की देशना से स्थितिकरण अंग को अंदर में प्रवेश करा दों क्योंकि धर्म यह कहता है कि किसी को पूजा करते वक्त गुस्सा आये तो उसे सँभलवा देनां यहाँ स्थितिकरण यह है कि एक चिटक नहीं चढ़ा पाया, दीप के स्थान पर धूप चढ़ा दिया और धूप में जितनी गर्मी थी वह तो कम थी, लेकिन आपके क्रोध का धुंआ बढ़ गयां भो ज्ञानी! माँ जिनवाणी कह रही है, उस समय उस जीव को सँभाल लों यदि वास्तव में दया है, करुणा है, तो गिरते हुए को उठा लेना, इससे बड़ी अनुकंपा और नहीं होगी आप कैसे दयावान् हो कि एक जीव भावों से गिर रहा है और आप देख रहे हो? मोक्षमार्ग कहता है कि लाखों वेदनाएँ, लाखों यातनाएँ सहन कर लेना, लेकिन किसी जीव को दर्शन-ज्ञान-चारित्र से च्युत नहीं होने देनां हाँ, मैं मानता हूँ कि आपका अपमान भी हो सकता है, आपको गालियाँ भी सुनने मिल सकती हैं, लेकिन जिस व्यापारी को अर्थ से प्रयोजन होता है, वह ग्राहकों की गालियों पर ध्यान नहीं देतां ऐसे ही मुमुक्षु जीव भी अनादर, मान-सम्मान पर ध्यान नहीं देता हैं अहो! व्यक्ति को देखने वाला कभी भी धर्म नहीं कर पाएगा, क्योंकि व्यक्ति में नियम से राग-द्वेष होते हैं यदि आप व्यक्ति देखोगे तो पहचानवालों को ही जय-जिनेंद्र कर पाओगे, क्योंकि तुम व्यक्ति देखते हो और धर्म देखोगे तो आपको हर व्यक्ति में जय- जिनेंद्र की दृष्टि दिखेगी व्यक्ति देखोगे तो किसी-किसी को ही नमोस्तु-नमोस्तु करोगे, और धर्म देखोगे तो तीन-कम-नौ-कोड़ी मुनिराजों के चरणों में शीश झुकेगां मुमुक्षु , व्यक्ति को नहीं, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy