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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 111 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
शुद्ध-दशा की प्राप्ति हो गई है, उसके लिये शुभ भी छोड़ने योग्य हैं पर जिसने शुभ पर दृष्टि ही नहीं डाली, उसे पहले अशुभ छोड़ना जरूरी है अन्यथा अशुभ करकरके निगोद में चले जायेंगें
भो ज्ञानी! जैसा शास्त्र में लिखा हो, वैसा ही कहना और जितना सही समझ में आ रहा है, उतना ही कहनां लोक में देवत्व तो नहीं है, देवताभास है; गुरुत्व नहीं है, गुरूआभास हैं जो ऐसा कहता है-ऐसे जीवों से आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि देव चार गति के होते हैं अहो! वृक्ष और देहरी पूज रहे हैं, कौन सा देवता है? दीपावली आ रही है, तराजू पूजें, बांट पूजें, घिनोंची पूजें, लोटा पूजें, चक्की पूजें, चूल्हा पूजें, पता नहीं कौन-कौन से देव-देवी पूजेंगें? ध्यान रखना, बहुत पूज लिया, अब तो परमदेव को पूजो, जिससे तुम पूज्य बन जाओं
भो ज्ञानी! जिसकी निज-तत्त्व में रुचि है, वह अमूढदृष्टि जीव हैं निश्चय की दृष्टि से निज आत्मतत्त्व को जानना अमूढदृष्टि भाव है, प्रपंचों में जाना मूर्खता का भाव हैं इसलिए, निज तत्व को समझों
श्री यंत्र
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