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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 110 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
मनुष्यजाति में सम्यक्त्व की उत्पत्ति के हेतु हैं ऐसा आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने "सर्वार्थसिद्धि" ग्रन्थ में लिखा हैं छठवें काल में देव नहीं होंगे, गुरु नहीं होंगे, धर्म उपदेश नहीं होंगे और एक मनुष्य दूसरे मनुष्यों को कच्चा चबायेगा ऐसे छठवें काल की तैयारी की भावना मत रखनां अभी भी अवसर है, साढ़े 18 हजार वर्ष मौजूद हैं इतने काल में जितना करना है, कर लों पंचमकाल के अन्त तक धर्म व धर्मात्मा रहेंगें परंतु छठवेंकाल में कोई सम्बन्ध / रिश्ते नहीं होंगे, सब तियंचों जैसा परिणमन होगा. यह सर्वज्ञ की देशना हैं।
भो प्रज्ञात्माओ सर्वज्ञ की वाणी न झूठी होगी, न हो रही है और न झूठी थीं जो ढ़ाई हजार साल पहले खिरी थी, वह आज सामने दिख रही हैं चक्रवर्ती के एवं चन्द्रगुप्त के सोलह सपने आज स्पष्ट नजर आ रहे हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने आपके ज्ञान को नमस्कार किया है कि वह परमज्योति / कैवल्य - ज्योति जयवन्त हो, जिसमें सब झलक रहा हैं
भो ज्ञानी ! समय यानि आगम, समय यानि आत्मा, समय यानि शासन और समय यानि समयं अतः, समय को देख लो तो स्वसमय को प्राप्त कर लोगे और समय को नहीं रोक पाये तो समय ठीक नहीं हो पायेगा यह समय फिर मिलने वाला नहीं हैं वह समय चला गया, तो समय भी चला जावेगां अतः, निकल चलो, अभी समय है, अभी पंचमकाल है, जो छठवें काल की अपेक्षा बहुत सुहावना हैं आज जगह-जगह धर्मात्मा, निग्रंथ गुरु दिख रहे हैं, जिनवाणी दिख रही हैं भगवान महावीर स्वामी का शासन आज भी जयवन्त हैं मध्यकाल की अपेक्षा से तो आप पुण्य आत्मा हो, विशेष जीव हो; क्योंकि उन्हें गुरु भी नहीं मिले, लेकिन आज हर जगह अपने को अरिहंत नहीं तो अरिहंत - मुद्रा तो दिख रही है, यही कलिकाल का चमत्कार हैं।
भो ज्ञानी! महान नीतिज्ञ आचार्य स्वामी सोमदेवसूरि 'यशस्तिलक-चम्पू' महाकाव्य में लिख रहे हैं- पंचमकाल / कलिकाल में सबके चित्त चलायमान हैं और देह अन्न का कीड़ा बना हुआ है, लेकिन फिर भी आश्चर्य है कि भगवान जिनेन्द्र के रूप को धारण करने वाले आज भी नजर आ रहे हैं, यही पंचमकाल का चमत्कार हैं देखो, सौभाग्यशाली जीव समय को समझकर स्वर्ग चले जा रहे हैं और दुर्भाग्यशाली जीव समय पर बैठकर आँखें बन्द करके नरक जा रहे हैं भो ज्ञानी आत्माओ ! अभी जिनवाणी मौजूद है, जब तक इस धरा पर अग्नि का वास है, तब तक वीतराग धर्म समाप्त होने वाला नहीं हैं।
भो ज्ञानी! दृढ संकल्प जिसके पास है, उसी के पास विश्व की सबसे बड़ी शक्ति हैं ध्यान रखना, दृढ़ संकल्प को कोई हिला नहीं सकतां जिसके मन में अस्थिर विचार आ रहे हैं कि क्या मालूम, भगवान सही हैं या नहीं, पर हमें जरूर मालूम है कि तुम्हारा सम्यक्त्व निर्मल नहीं है, क्योंकि संसार में तुम डोल रहे हों आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं- जिसमें हिंसा का कथन हो, अब्रह्म का कथन हो, हिंसा में धर्म लिखा हो, अनाचार को धर्म कहा हो, दया को पाप कहा हो, ऐसी वाणी को जिनवाणी मत कह देना जिस जीव को
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