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सृजन किया। यह सब सोच कर मैंने भी अपनी मातृभाषा 'हरियाणवी' में जैन कथाओं की रचना हरियाणवी भाषा भाषी पाठकों के लिए की हैं । यह भाषा भारत के जिस क्षेत्र/प्रदेश में बोली जाती है, उस प्रदेश के गौरव और वहाँ की संस्कृति में भीगे लोगों के बारे में कुछ न कहना अनुचित होगा। अतः कुछ शब्द हरियाणा क्षेत्र उसकी गरिमा के सम्बन्ध में कहना चाहूँगा ।
हरियाणा एक ऐसा प्रान्त है, जहाँ हरि-श्रीकृष्ण ने पार्थ को गीता का उपदेश दिया था । वेदव्यास ने इस भूभाग को 'धर्मक्षेत्र' कहा है। इस प्रदेश की एक महती विशेषता यह है जो उल्लेखनीय है कि यहाँ वैदिक-जैन और बौद्ध भारत की तीनों संस्कृतियों का स्मरणीय संगम हुआ है । वैदिक धर्म के गीतोद्भव के साथ यहाँ बौद्धों के विहारमठ भी बनें । पुरातत्त्व विदों के अनुसार वर्तमान का अबोहर नगर पूर्व में बौद्धगृही नगरी के नाम से जाना जाता था । यहाँ के उत्खनन-खुदाई में बुद्ध और महावीर की बहुमूल्य प्रतिमाएं मिली हैं। बौद्ध धर्म के सामान्तर जैन धर्म भी हरियाणा में प्रभूत फला-फूला है। कहा जाता है कि भगवान के पावन चरण भी यहाँ की धरती पर पड़े थे। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि हरियाणा प्रदेश का प्रसिद्ध नगर हिसार ही जैन नगर इषुकार था ।
हरियाणा कृषि एवं ऋषि की परम्परा से धनी और संपन्न प्रदेश है। यहाँ के लोग भोले, सरल, निष्कपट, निश्छल और विशुद्ध शाकाहारी हैं। दूध-दही की यहाँ की प्रचुरता इस लोकोक्ति से स्पष्ट हो जाती है:
देसां में देस हरियाणा ।
जहाँ दूध-दही का खाणा ।। यहाँ के लोग स्वस्थ, बलवान, हृष्ट-पुष्ट और सादा जीवन जीने वाले होते हैं । स्त्री-पुरुष की बराबरी अथवा कंधे-से-कंधा-मिलाकर चलने की गति हरियाणा में देखी जा सकती है। पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी परिश्रमी और पुरुषों के साथ खेती में काम करती हैं।
ऐसी कृष्ण-बुद्ध और महावीरमयी पुण्य धरा पर मेरा जन्म हुआ। यद्यपि संत-श्रमण का अपना कोई प्रान्त नहीं होता। सन्त सबका होता है और सब उसके अपने होते हैं। फिर भी परिचय की प्रासंगिकता के कारण यह बताना पड़ा है कि मेरी मातृभाषा-स्वकीय-अपनी बोली हरियाणवी है। परिचय के प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि हरियाणवी हिन्दी की ही उपभाषा है । वैसे भी हरियाणा हिन्दी भाषी क्षेत्र है । भाषा-शास्त्रियों ने हिन्दी का ही एक प्रकार हरियाणवी हिन्दी को कहा है। इस भाषा में प्यार का इतना खुलापन है कि 'आप' और 'तुम' जैसे शब्द दूरी के आवरण में ढके आडम्बरी माने जाते हैं । अतः यहाँ छोटे-बड़े-पूज्य सब के साथ तू-तेरा